पृष्ठ:दलित मुक्ति की विरासत संत रविदास.pdf/१२१

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आज दिवस लेऊं बलिहारा । मेरे घर आया राम का प्यारा ।। टेक। आंगन बंगला भवन भयो पावन । हरिजन बैठे हरिजस गावन ।। 1 ।। करूं डंडवत चरन पखारूं । तन-मन धन उन ऊपरि वारूं ।। 2 ।। कथा कहैं अरु अर्थ बिचारैं । आप तरैं औरन को तारें । 3 ।। कह रैदास मिलैं निज दास । जनम जनम के काटै पास ॥ 4 ॥ हरिजन – भक्त जन । डंडवत - दण्डवत नमस्कार । पखारूं – धोऊं । पास- पाश, बन्धन । कहा भइओ जउ तनु भइओ छिनु छिनु । प्रेम जाइ तउ डरपै तेरो जनु ।। 1 ।। तुझहि चरन अरविंद भवन मनु । पान करत पाइओ रामईआ धनु ।। 1 ।। रहाउ ।। संपति बिपति पटल माइआ धनु । तामहि मगन होत न तेरो जनु । ॥ 2 ॥ प्रेम की जेवरी बाधिओ तेरो जनु । कहि रविदास छूटिबो कवन गुन । ॥ 3 ॥ कहा भइओ – क्या हुआ । तनु - शरीर । छिनु – क्षीण, क्षणिक । डरपै- डरता है । तेरो जनु – तेरा भक्त । भवन - आश्रय । मनु - मन । पटल - आवरण। जेवरी - रस्सी | कवन गुन - किस योग्यता के बल पर | - 124 / दलित मुक्ति की विरासत : संत रविदास -