पृष्ठ:दलित मुक्ति की विरासत संत रविदास.pdf/१२४

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ऐसी भगति न होइ रे भाई | राम नाम बिनु जो कुछ करिये, सो सब भरमु कहाई ॥ टेक ॥ भगति न रस दान, भगति न कथै ज्ञान । भगति न बन में गुफा खुदाई ।। 1 ।। भगति न ऐसी हांसी, भगति न आसा- पासी । भगति न यह सब कुल कान गंवाई || 2 || भगति न इंद्री बांधा भगति न जोग साधा। भगति न अहार घटाई, ये सब करम कहाई || 3 || भगति न इंदी साधे, भगति न वैराग बांधे। भगति न ये सब वेद बड़ाई ॥ 4 ॥ भगति न मूड़ मुंडाए, भगति न माला दिखाये । भगति न चरन धुवाए, ये सब गुनी जन कहाई । ॥ 5 ॥ भगति न तौ लौं जाना, आपको आप बखाना । जोइ-जोइ करै सो- सो करम बड़ाई ।।6।। आपो गयो तब भगति पाई, ऐसी भगति भाई । राम मिल्यो आपो गुन खोयो, रिधि सिधि सबै गंवाई ।। 7 ॥ कह रैदास छूटी आस सब, तब हरि ताही के पास । आत्मा थिर भई तब सबही निधि पाई ॥ 8 ॥ आसा – पासी, आशा-पाश, आशा का बंधन । कुल कान- कुल की मर्यादा। हआर – आहार, भोजन | मूंड़ – सिर । थिर– स्थिर - - तुम गोपाललहिं नहिं गैहो । तो तुम कां सुख में दुःख उपजै, सुखहिं, कहां ते पैहो । टेका। जो संत रविदास वाणी / 127