पृष्ठ:दलित मुक्ति की विरासत संत रविदास.pdf/१२६

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यह अंदेस सोच जिय मेरे निसि बासर गुन गाऊं तेरे ॥ टेक ॥ तुम चिंतत मेरी चिंतहु जाई । तुम चिंतामनि हौं इक नाई ॥ 1 ॥ भगति हेत का का नहिं कीन्हा । हमरी बेर भये बल हीना ॥ 2 ॥ कह रैदास दास अपराधी । जेहि तुम द्रवौ सो भगति न साधी ॥ 3 ॥ अंदेस - चिन्ता, विचार | तुम चिंतत- तुम्हारा चिन्तन करने से । चिंतामनि- - कामनाओं को पूर्ण करने में समर्थ । नाई - सदृश का का – किस का । द्रवौ - (करुणा) से द्रवित हो । - जउ हम बांधे मोह फांस हम प्रेम बंधनि तुम बांधे। अपने छूटन को जतनु करहु हम छूटे तुम आराधे ॥ 1 ॥ माधवे जानत हहु जैसी तैसी । अब कहा करहुगे ऐसी ॥ 1 ॥ रहाउ ॥ मीनु पकरि फांकिओ अरु काटिओ रांधि कीओ बहु बानी । खण्ड-खण्ड करि भोजनु कीनो तऊ न बिसरिओ पानी ॥ 2 ॥ आप बापै नाही किसी को भावन को हरि राजा । मोह पटल सभु जगतु बिआपिओ भगत नहीं संतापा ॥ 3 ॥ कहि रविदारा भगति इक बादी अब इह कासिउ कहीऐ । जा कारनि हम तुम आराधे सो दुखु अजहू सहीऐ ॥ 4 ॥ तुम आराधे- तुम्हारी उपासना करने से । जैसी तैसी – वास्तविक स्थिति। फांकियो – काटी गई | रांधि - पका कर । बहुबानी - अनेक प्रकार से । - संत रविदास वाणी / 129