पृष्ठ:दलित मुक्ति की विरासत संत रविदास.pdf/१२९

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प्रभु जी तुम दीपक हम बाती । जा की जोति बरै दिन राती ॥ 3 ॥ प्रभु जी तुम मोती हम धागा । जैसे सोनहिं मिलत सोहागा ॥ 4 ॥ प्रभु जी तुम स्वामी हम दासा । ऐसी भक्ति करै रैदासा ॥ 5 ॥ बास – सुगन्ध | धन – मेघ । चितवत – देखता रहता है । बरै - जलती रहती है । - तुम चंदन हम इरंड बापुरे संगि तुमारे बासा | नीच रुख ते ऊं भए है गंध सुगंध निवासा ॥1॥ माधउ सतसंगति सरनि तुम्हारी । हम अउगुन तुम्ह उपकारी ॥ 1 ॥ रहाउ ॥ तुम मखतूल सुपेद सपीअल हम बपुरे जस कीरा । सत संगति मिलि रहीऐ माधउ जैसे मधुप मखीरा ॥ 2 ॥ जाती ओछा पाती ओछा ओछा जनम हमारा । राजा राम की सेव न कीनी कहि रविदास चमारा ॥ 3 ॥ इरंड - एरंड, रेंड | बापुरे - बेचारा, दीन । बासा - निवास । मखतूल- - रेश्म | सुपेद – स्फेद, श्वेत । सपीअल - अत्यधिक स्फेद । मधुप मखीरा - शहद की मक्खी । मिलत पिआरो प्रान नाथु कवन भगति ते । साध संगति पाई परम गते ॥ रहाउ ॥ मैले कपरे कहा लउ धोवउ । 132 / दलित मुक्ति की विरासत संत रविदास