पृष्ठ:दलित मुक्ति की विरासत संत रविदास.pdf/१४

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उन्होंने शूद्र को कोई महत्त्व नहीं दिया। इस तरह रविदास को सीधे-सीधे ब्राह्मण घोषित करने वाली कहानी गढ़ी गयी। जबकि रविदास ने अपनी वाणी में अपनी जाति व वर्ण के बारे में कई कई बार स्पष्ट तौर पर लिखा है :

ऐसी मेरी जाति विख्यात चमारं
हृदय राम गोबिन्द गुन सारं

रविदास की वाणी के अंत:साक्ष्यों पर ही विश्वास करना ज्यादा उपयुक्त है, क्योंकि जब पिछले जन्म का ब्राह्मण भी अपनी मां जो शुद्र है उसका दूध पीने से इनकार करता है तो फिर इस जन्म का ब्राह्मण शूद्र के घर उपदेश देने कैसे पहुंचने के लिए तैयार हो गया। जब पिछले जन्म में शूद्र के घर से लाई भिक्षा के कारण वे अपने शिष्य को शूद्र होने का उपदेश दे सकता है तो इस जन्म में शूद्र के पास जाने का तो कोई कारण ही नजर नहीं आता। असल में यह कहानी रविदास की महानता का कारण उसका किसी न किसी तरह से ब्राह्मण से सम्पर्क होना सिद्ध करती है।

रविदास और कबीर दोनों एक ही परम्परा के संवाहक हैं और दोनों एक ही शहर व समाज में चेतना का प्रसार कर रहे थे। कबीर के बारे में भी इस तरह की अनर्गल बातें जोड़ दी गई हैं। "किंवदंती के अनुसार कबीर एक बाल विधवा ब्राह्मणी के पुत्र थे, जिसने उन्हें लोक लाज के कारण तालाब में बहा दिया था। किंतु यह धारणा मिथ्या और मनगढंत मालूम पड़ती है। यही नहीं इसको सिद्ध करने के लिए कबीर वाणी में यह पद भी जोड़ दिया गया:

पूरब जनम हम बाह्मन होते, औछे करम तप हीना।
रामदेव की सेवा चूकी, पकरि जुलाहा कीनां॥

अर्थात पूर्वजन्म में हम ब्राह्मण थे, किंतु नीच कार्य करने, जप, तप, व्रत आदि न करने तथा भगवान राम की सेवा करने के अभाव के कारण जुलाहे के वंश में उत्पन्न किए गए। विद्वानों ने इस पद को प्रक्षिप्त घोषित किया है। कबीर को अपने को बार जुलाहा कहते हैं और संत बनने के बाद भी कपड़े बुनने का काम करते हैं, जिसका उल्लेख उनकी वाणियों में हैं।

रविदास के साथ कई कहानियां इस तरह की प्रचारित हैं कि वे परम संतोषी थे, धन को छूते भी नहीं थे। सारा दिन अपना काम करते रहते थे और ब्राह्मण को एक जोड़ा जूतियों का हर रोज दान करते थे। ये कहानियां उनके संतोषी स्वभाव उजागर करती हैं, लेकिन सवाल यह है कि क्या ये उनके प्रति श्रद्धा भाव के कारण जोड़ी गई हैं या इसके पीछे कोई अन्य मंतव्य भी हो सकता है। यदि श्रद्धा भाव से भी ऐसी कहानियां निर्मित की हैं तो उनका भी एक कारण जो ब्राह्मणवाद के लिए

संत रविदास जीवन परिचय/17