पृष्ठ:दलित मुक्ति की विरासत संत रविदास.pdf/१३१

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।

जीवत मुक्त सदा निरबान ॥ कहि रविदास परम बैराग । रिदै रामु की न जपसि अभाग ॥ 4 ॥ उपजै— उत्पन्न होती । दीसै – दिखाई देता है। निहकामु – निष्काम, कामना- रहित। परचै–परिचय प्राप्त कर समझ कर । रवै रमण करता है। पारसु परसै- - पारस का स्पर्श प्राप्त करता है। दुविधा- संशय | बिनु दुआरे - बिना द्वार के, सहज ही। अनभै – निर्भय । बनराइ – वन, वृक्षों का समूह | बिलाई - नष्ट हो जाता है। अभिआसु - अभ्यास | सइआन - चतुर । निरबान- मोक्ष - - रिदै – हृदय । की न – क्यों नहीं । - दैहु कलाली एक पियाला, ऐसा अवधु है मतवाला ॥ टेक ॥ हैं रे कलाली तैं क्या किया, सिरका सा प्याला दिया ॥ 1 ॥ कहै कलाली प्याला देऊं, पीवन हारे का सिर लेऊं ॥ 2 ॥ चंद सूर दोउ सनमुख होई पीवै प्याला मरै न कोई ॥ 3 ॥ सहज सुन्न में भाठी सरवै पावै रैदास, गुरुमुख दरवै ॥ 4 ॥ कलाली – मदिरा बेचने वाली स्त्री । प्याला- मदिरा का प्याला । अवधू- अवधूत, वैरागी, साधु । सिरका – ईख के रस आदि से तैयार किया गया एक तीखा रस चंद सूर - चांद और सूर्य । सहज सुन्न – स्वानुभूति । सरवै- पकती है। गुरुमुख दरबै- गुरु मुख के द्वारा । - - सह की सार सुहागनि जानै । तजि अभिमानु सुख रलीआ मानै ॥ 134 / दलित मुक्ति की विरासत संत रविदास

-