पृष्ठ:दलित मुक्ति की विरासत संत रविदास.pdf/१३३

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राज भुइंग प्रसंग जैसे हहि अब कुछ मरम जनाइआ । कनिक कटक जैसे भूलि परे अब कहते कहनु न आइआ ॥ 3 ॥ सरबै एकु अनेकै सुआमी सभ घट भोगवै सोई । कहि रविदास हाथ पै नेरै सहजे होइ सु होई ॥ 4 ॥ होते — थे । अनल अगम - समुद्र की आग । मइओदधि – समुद्र । अछत - - रहते हुए भी । राज – राज्य | राज - रज्जु, रस्सी । राज भुइअंग प्रसंग रस्सी - को सांप समझ लेने की बात । कनिक – कनक, सोना । कटक - कंकण । भोगवै विद्यमान है, मौजूद है। रथ को चतुर चलावन हारो। खिन हाकै खिन उभटै राखे, नहीं आन कौ सारो ॥ टेक ॥ जब रथ थकै सारथी थाकै, तब को रथहि चलावै । नाद बिंदु ये सब ही थाके, मन मंगल नहिं गावै ॥ 1 ॥ पांच तत्त को यह रथ साज्यो, अरधै उरध निवासा । चरन कमल लव लाइ रह्यो है, गुन गावै रैदासा ॥ 2 ॥ - रथ - शरीर से अभिप्राय है । खिन - क्षण में । उभटै - अहंकार पूर्वक व्यवहार करता है। सारथी – रथ अर्थात् शरीर को चलाने वाला, मन । नाद बिंदु - समाधि व्यवस्था में भीतर से उठने वाली मधुर ध्वनि जिसके साथ योगी जन तल्लीनता का अनुभव करते हैं। पांच तत्व - पृथ्वी, जल, तेज, वायु और आकाश । अरदै - - उरध- आधा ऊर्ध्व । लव- प्रेम, भक्ति । 136 / दलित मुक्ति की विरासत : संत रविदास