पृष्ठ:दलित मुक्ति की विरासत संत रविदास.pdf/१३५

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नेक अटक किन राखो केसौ, मेटो बिपति हमारी ॥ 4 ॥ कह रैदास उदास भयो मन भाजि कहां अब जैये । इत उत तुम गोविंद गोसाई, तुमहीं माहिं समैये ॥ 5 ॥ - बरजिवो – वर्जना (हटाना), हटायो, छुड़ाओ । उतूल - प्रबल । खेया खाया । बाजीगर – खेल करने वाला । कौतिग- कौतुक, तमाशा । षड ब्रह्मण्ड - छ: ब्रह्मण्ड । पचि मरियत है - थक हार गये हैं। नेक – तनिक । किन – क्यों - - - -इधर-उधर, न । केसो – परमात्मा । भाजि जैये - भाग कर जायें । इत उत्त सर्वत्र । समैये – समाना, मिलना, लीन होना । माटी को पुतरा कैसे नचतु है । देखै देखै सुनै बोलै दउरिओ फिरतु है ॥ 1 ॥ रहाउ ॥ जब कछु पावै तप गरबु करत है । मइआ गई तब रोवनु लगतु है ॥ 1 ॥ मन बच क्रम रस कसहि लुभाना । बिनसि गइआ जाइ कहूं समाना ॥ 2 ॥ कहि रविदास बाजी जगु भाई । बाजीगर सउ मोहु प्रीति बनि आई ॥ 3 ॥ - माटी को पुतरा - मिट्टी का पुतला, मानव - शरीर । गरबु - गर्व, अहंकार । रोवनु लगतु है – रोने लगता है। मन बच क्रम- मन, वाणी और कर्म । विनसि गइआ – नष्ट हो गया। बाजीगर - जादू के खेल करने वाला । सउ – से। 138 / दलित मुक्ति की विरासत संत रविदास