पृष्ठ:दलित मुक्ति की विरासत संत रविदास.pdf/१३७

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।

गुन निर्गुन कहियत नहिं जाके, कहौ तुम बात सयानी ॥ 4 ॥ याही सों तुम जोग कहत हौ, जब लग आस की पासी । छुटै तबहि जब मिलै एक ही, भन रैदास उदासी ॥ 5 ॥ अखिल - सम्पूर्ण, अखण्ड अवरन - अवर्णनीय, वर्णनातीत । बरन – रंग | - रूप – आकार । ऊसन – ओस । सरवत - हर जगह । निरलेपी – निर्लिप्त, असंग । - श्वास-निश्वास से रहित । निरबीकार – निर्विकार, विकार, रहित । निसासी - गगन - आकाश । धूर – पृथ्वी । हरहर - हरा करके, ठहाका मार कर । पवन - पूर – वायु की तरंग अथवा वायु - वेग । आस - मन – कहता है । है सब आतम सुख परकास सांचो । निरंतर निराहार कलपित ये पांचों | टेक । आशा। पास - पाश, बंधन। - आदि मध्य औसान एक रस, तार बन्यो हो भाई । थावर जंगम कीट पंतगा, पूरि रहयो हरि राई ॥ 1 ॥ सवेश्वर सर्वांगी सबगति, करता हरता सोई । सिव न असिव, न साध अस सेवक, उनै भाव नहि होई ॥ 2 ॥ धरम अधरम मोच्छ नहिं बंधन, जरा मरन भव नासा । दृष्टि अदृष्टि गेय अरु ज्ञाना, एकमेक रैदासा ॥ 3 ॥ आतम सुख - आत्मा में लीन होने का आनंद । परकास - प्रकाश । निरन्तर - - 140 / दलित मुक्ति की विरासत संत रविदास

लगातार रहने वाला। औसान - अवसान, अन्त । थावर - स्थावर, अचर । जंगम - - चर, जीवधारी। सबगति - जिस की सर्वत्र गति हो, सर्व व्यापक । करता कर्ता, करने वाला । हरता - हर्ता, संहार करने वाला । सिव – शिव, मंगलकारी । - - असिव – अशिव, अमंगलकारी । भाव – विकार । गेय - ज्ञान का विषय | एकमेक – एक ही ।