पृष्ठ:दलित मुक्ति की विरासत संत रविदास.pdf/१५

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अनिवार्य है। ब्राह्मणवाद की विचारधारा का निमार्ण इसलिए ही तो किया गया है कि वह शोषण को इस तरह वैधता प्रदान करे कि शोषण करने वाले के सामने कोई नैतिक संकट न खड़ा हो। शोषण वह सिर ऊंचा करके कर सके और दूसरी तरफ जिसका शोषण हो रहा है उसे वह शोषण नहीं, बिल्कुल सहज स्वाभाविक सी बात लगे। तभी शोषण का यह कारोबार इतना बेधड़क होकर चल सकता है, और चल रहा है। इस मकसद को पूरा करने के लिए शोषित समाज के नायकों के साथ इस तरह के किस्से जोड़ दिए कि उनके अनुयायी अनुकरण करें। यह बात सही है कि श्रम को अधिमान देने वाला व्यक्त कभी अन्य कारणों से आए धन को तो स्वीकार नहीं करेगा परन्तु रविदास ने शोषण का कभी पक्ष नहीं लिया और न ही उसे जायज ठहराया। इससे साबित करना चाहते होंगे कि शूद्रों को तो धन की कोई आवश्यकता नहीं है। यदि उनको धन बनाने के साधन दे भी दिए जाएं तो वे इस उपयोग नहीं करेंगे। जिस तरह रविदास ने पारसमणि को छुआ ही नहीं वह उसी तरह झोंपड़ी में खुंसी रही ।

रविदास के बारे में यह भी प्रचलित है कि जब उन्होंने पारसमणि का कोई प्रयोग नहीं किया तो उनकी दरिद्रता दूर करने के लिए ईश्वर ने पांच सोने की मुद्राएं देनी आरम्भ कीं। वे रविदास पर इसलिए प्रसन्न हुए कि वे "नित्यप्रति भगवान की मूर्तियों को स्नानादि कराते, चन्दन, अक्षत, पुष्प, धूप, दीप और नैवेद्य आदि से उनकी सेवा करते, तत्पश्चात् अन्न-जल ग्रहण करते थे।" कहानी का दूसरा हिस्सा और भी रोचक है कि रविदास हर रोज स्वर्ण मुद्राएं तो लेते रहे और इस धन से "एक भव्य एवं विशाल मंदिर तथा एक धर्मशाला बनवाया। मंदिर और धर्मशाले के पास ही उन्होंने एक बड़ा पक्का तालाब भी बनवाया।" अब इस कहानी में रविदास का संतोषी स्वभाव तो पीछे रह गया सामने आई उनके द्वारा साकार ईश्वर की पूजा। भक्ति के नाम पर वही बाहरी आडम्बर व पाखण्ड जिसका कि उनकी वाणी बार-बार खण्डन करती है। रविदास ब्राह्मण पुजारी की तरह ही नजर आने लगते हैं। उनका निर्गुण निराकार, सहज-भक्ति, सादगी व बाहरी आडम्बरों का विरोध धरा का धरा रह जाता है। रविदास की वाणी को देखें तो ब्राह्मणवाद की जड़ें उखड़ती हैं और यदि इन किंवदंतियों पर भरोसा करें तो रविदास की जड़ें ब्राह्मणवाद में नजर आती हैं।

माथै तिलक हाथ जप माला, जग ठगने कूं स्वांग बनाया।
मारग छांड़ि कुमारग डहकै, सांची प्रीत बिनु राम न पाया।

 
18/दलित मुक्ति की विरासत:संत रविदास