पृष्ठ:दलित मुक्ति की विरासत संत रविदास.pdf/१४३

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बोलि बोलि समझी जब बूझी, काल सहित सब खाई ॥ 3 ॥ बोलै गुरु अरु बोलै चेला, बोल बोल की परतिति आई । कह रैदास मगन भयो जब ही, तबही परम निदि पाई ॥ 4 ॥ तेरा जन – तेरा भक्त । बोलै - वर्णन करे, अभिव्यक्त करे, कह। वियाधि- - व्याधि, व्यथा, रोग । बोल – व्यक्त करने वाला, वक्ता । अबोल – न कहने वाला, मौन (साधक)। मान परि बोलै – गर्व के साथ कहे, अभिमान में कहे। परतिति- प्रतीति, विश्वास । पार गया चाहै सब कोई । रहि उर वार पार नहिं होई ॥ टेक ॥ पार कहै उर वार से पारा । बिन पद परचे भ्रमै गंवारा ॥ 1 ॥ पार परमपद मंझ सुरारी । तामें आप रमै बनवारी ॥ 2 ॥ पूरन ब्रह्म बसै सब ठाई । कह रैदास मिले सुख साईं ॥ 3 ॥ पार गया चाहै - मोक्ष प्राप्ति की इच्छा करे । रहि उर वार – इस ओर - - अर्थात् संसारिक विषय-वासनाओ में आसक्त होकर । पार नहीं होई - मोक्ष प्राप्त नहीं कर सकता। पद परचे - परम तत्व का परिचय | - 146 / दलित मुक्ति की विरासत : संत रविदास