पृष्ठ:दलित मुक्ति की विरासत संत रविदास.pdf/१४४

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गोबिंदे तुम्हारे से समाधि लागी । उर भुअंग भस्म अंग सतत बैरागी ॥ टेक ॥ जाके तीन नैन अमृत बैन, सीस जटाधारी । कोटि कलप ध्यान अलप, मद अंतकारी ॥ 1 ॥ जाके लील बरन अकल ब्रह्म गले रुंडमाला । प्रेम मगन फिरत नगन, संग सखा बाला ॥ 2 ॥ अस महेस बिकट भेस, अजहूं दरस आसा. कैसे राम मिलौं तोहि, गावै रैदासा ॥ 3 ॥ - - समाधि – ध्यान । भुअंग – सर्प | सतत - निरन्तर । तीन नैन - दो शारीरिक और एक ज्ञानदेव । बैन - वचन | कोटि कल्प-करोड़ों युगों तक । मदन अंतकारी - काम देव का नाश करने वाले । लील – नीला | बरन – रंग | अकल- अखण्ड । बिकट – भयंकर । तोहि - तुझे । जन को तारि तारि बाप रमइआ । कठिन फंद परयो पंच जमइआ ॥ टेक ॥ तुम बिन सकल देव मुनि ढूंढूं। कहूं न पाऊं जमपास छुड़इया ॥ 1 ॥ हम से दीन दयाल न तुमसे। चरन सरन रैदास चमइया ॥ 2 ॥ - राम । जमइया – यम । छुड़इया - छुड़ाने वाला। चमइया - - चमार । रमइया- संत रविदास वाणी / 147