पृष्ठ:दलित मुक्ति की विरासत संत रविदास.pdf/१४७

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'रविदास' जगत मंह राम सम, कोउ नांहि उदार । गनी गरीब नवाज प्रभ, दीनन के रखवार ॥ 7 ॥ काबे अरु कैलास मंह, जिह कूं, ढूंढण जांह। 'रविदास' पिआरा राम तउ, बइठहिं मन मांह ॥ 8 ॥ पीव - प्रियतम । भेष – रूप । गनी – धनी । गरीब नवाज - गरीबों का - - पालन करने वाला। रखवार – रक्षा करने वाला । बार खोजत का फिरइ, घट भीतर ही खोज। 'रविदास' उनमानि साधिकर, देखहु पिआ कूं ओज ॥ १ ॥ बन खोजइ पिअ न मिलहिं, बन मंह प्रीतम नांह । 'रविदास' पिअ है बसि रहयो, मानव प्रेमहिं मांह ॥ 10 ॥ राधो क्रिस्न करीम हरि, राम रहीम खुदाय । 'रविदास' मोरे मन बसहिं, कहुं खोजहूं बन जाय ॥ 11 ॥ ओंकार है सत्त नाम, आदि जुगादि सभ सत | 'रविदास' सत्त कहि सामुंहे, टिकवै नांहि असत्त ॥ 12 ॥ - मानव प्रेमहिं मांह - जहा मानव मात्र के लिए प्रेम हो । राघो – राघव, राम, परमात्मा का नाम । करीम - दयालु, परमात्मा का नाम । सत्त- सत्य, परम तत्व | जुगादि- सृष्टि के आदि-आरंभ में सांमुहे-सामने । असत्त- असत्य । जिन्ह नर सत्त तिआगिआ, तिन्ह जीवन मिरत समान । 'रविदास' सोई जीवन भला, जहं सभ सत्त परधान ॥ 13 ॥ 'रविदास' सत्त मति छांडिए, जौ लौं घट में प्रान । दूसरो कोउ धरम नांहि, जग मंहि सत्त समान ॥ 14 ॥ 150 / दलित मुक्ति की विरासत: संत रविदास