पृष्ठ:दलित मुक्ति की विरासत संत रविदास.pdf/१४९

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एकै माटी के सभ भांडे, सभ का एकौ सिरजन हारा। 'रविदास' ब्यापै एकौ घट भीतर, सभकौ एकै घड़ै कुम्हारा ॥ 22 ॥ 'रविदास' उपिजइ सभ एक बुंद ते, का ब्राह्मण का सूद । मूरिख जन न जानइ, सभ मंह राम मजूद ॥ 23 ॥ 'रविदास' इकही बूंद सों, सभ ही भयो बित्थार । मूरिख हैं जो करत हैं, बरन अबरन बिचार ॥ 24 ॥ - - बूंद - तत्वानुभूति के आनंद रस की एक बूंद । खलास – मुक्त । भांडे - बर्तन, पात्र। सिरजन हारा - रचने वाला । घड़ै - बनाता है, रचा है। कुम्हार - कुम्भकार। बुंद –ब्रह्मरूप बूंद | सूद - शूद्र । बित्थार - विस्तार, प्रसार । बरन अबरन — छोटी बड़ी जाति । सभ महिं एकुं रामहु जोति, सभनंह एकउ सिरजनहारा ‘रविदास’ राम रमहिं सभन मंहि बाह्मन हुई क चमारा ॥ 25 ॥ आद अंत जिह कर नहीं, जिह कर नाम अनंत । सभ करि पालन हार हइ, 'रविदास' अबिगत भगवंत ॥26॥ 'रविदास' इक जगदीस कर, धेरै अनंतह नाम । मोरे मन मंहि बसि रह्यो, अधमन पावन राम | 27 ॥ 'रविदास' हमारो सांइयां, राघव राम रहीम सभ ही राम को रूप हैं, केसो क्रिस्न करीम ॥ 28 ॥ रमहिं - रमण करता है, समाया हुआ है। अविगत - अविनाशी । अधमन पावन - पतितों को पवित्र करने वाला सांइयां - स्वामी । - अलख अलह खालिक खुदा, क्रिस्न करीम करतार । रामह नांउ अनेक हैं, कहै 'रविदास' बिचार ॥ 29 ॥ 152 / दलित मुक्ति की विरासत : संत रविदास