पृष्ठ:दलित मुक्ति की विरासत संत रविदास.pdf/१६

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भगति ऐसी सुनहु रे भाई।
आइ भगति तब गई बड़ाई ॥टेक॥
कहा भयो नाचे अरू गाये, कहा भयो तप कीन्हे।
कहा भयो जे चरन पखारे, जौं लौं तत्व न चीन्हे।
कहा भयो जे मूंड मुंडायो, कहा तीर्थ व्रत कीन्हे।
स्वामी दास भगत अरू सेवक, परम तत्व नहिं चीन्हे ।
कह रैदास तेरी भगति दूरी है, भाग बड़े सो पावै।
तजि अभियान मेटि आपा पर, पिपिलिक वै चुनि खावै॥

ऐसी भगति न होई रे भाई।
राम नाम बिनु जो कछु करिये, सो सब भरमु कहाई॥
भगति न रस दान, भगति न कथै ज्ञान।
भगति न बन में गुफा खुदाई॥
भगति न ऐसी हांसी, भगति न आसा-पासी ।
भगति न यह सब कुल कान गंवाई॥
भगति न इंद्री बांधा भगति न जोग साधा।
भगति न अहार घटाई, ये सब करम कहाई॥
भगति न इंद्री साधे, भगति न वैराग बांधे।
भगति न ये सब वेद बड़ाई॥
भगति न मूड़ मुंडाए, भगति न माला दिखाये।
भगति न चरन धुवाए, ये सब गुनी जन कहाई॥
भगति न तौ लौं जाना, आपको आप बखाना।
जोड़इ-जोड़इ करै सो सो करम बड़ाई॥
आपो गयो तब भगति पाई, ऐसी भगति भाई।
राम मिल्यो आपो गुन खोयो, रिद्धि सिद्धि सबै गंवाई।
कह रैदास छूटी आस सब, तब हरि ताही के पास।
आत्मा थिर भई सबही निधि पाई॥

"गुरु रविदास जी के जीवन से संबंधित अनेक चमत्कारिक घटनाएं जनश्रुतियों के रूप में प्रचलित हैं। भगवान का स्वयं साधु रूप में आकर इन्हें पारसमणि प्रदान करने पर अस्वीकार करना, भगवान के सिंहासन के नीचे से सोने की पांच मोहरों का नित्य प्राप्त होना, गंगा का हाथ निकालकर ब्राह्मण से रविदास की भेंट स्वीकार

 

संत रविदास :जीवन परिचय/19