पृष्ठ:दलित मुक्ति की विरासत संत रविदास.pdf/१५४

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।

के अनुसार जाति का विचार । परधान - प्रधान, मुख्य । इह्यो — यही । बेद कौ धरम - (यही) वेद के अनुसार सत्य है । बखान - व्याख्यान, वर्णन | नदान - नादान, बेसमझ। सिरजनहार – रचना करने वाला । कूं – को । करि डारि है- कर डालता है। करम कौ कीच - कर्म का कीचड़, दुष्कर्मों का बुरा प्रभाव । ओछे- नीच। जात जात में जात है, ज्यों केलन में पात । 'रविदास' न मानुष जुड़ सकैं, जौं लौं जात न जात ॥ 61 ॥ 'रविदास' बाह्मन मति पूजिए, जउ होवै गुनहीन । पूजहिं चरन चंडाल के, जउ होवै गुन परवीन ॥ 62 ॥ दया धर्म जिन्ह में नहिं, हिरदै पाप को कीच । 'रविदास' तिन्हिं जानि हो, महापातकी नीच ॥ 63 ॥ जिन्ह करि हिरदै सत बसई, पंच दोष बसि नांहि । ‘रविदास' तौ नर ऊंच भये, समुझि लेहु मन मांहि ॥ 64 ॥ - जात जात में जात है - एक एक जाति में अनेक जाति पाई जाती है । न .. जात - जब जुड़ सकैं – जुड़ नहीं सकते, एक नहीं हो सकते। जौं लौं... - तक जाति-पाति का भेदभाव दूर नहीं होता। परवीन - प्रवीण । गुन परवीन - गुणों से सम्पन्न । कीच– कीचड़ महापातकी – महा पापी | सत - सत्य बसई- निवास करता है। पंच दोष- काम, क्रोध, लोभ, मोह, अहंकार रूपी पांच दोष । ऊंचे कुल के कारणै, ब्राह्मन कोय न होय । के जउ जानहि ब्रह्म आत्मा, 'रविदास' कहि ब्राह्मन सोय ॥ 65 ॥ काम क्रोध मद लोभ तजि, जउ करइ धरम कर कार । सोइ ब्राह्मन जानिहि, कहि 'रविदास' बिचार ॥ 66 ॥ संत रविदास वाणी/ 157