पृष्ठ:दलित मुक्ति की विरासत संत रविदास.pdf/१७

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ जाँच लिया गया है।

करके बदले में रत्न जड़ित सोने का कंगन प्रदान करना, राजा की सभा में ब्राह्मणों का विवाद में पराजित होना, जल में शालिग्राम की मूर्ति तिराना तथा सिंहासन से मूर्ति का रविदास जी की गोद में आ बैठना, भोज में अनेक रूप धारणकर प्रत्येक ब्राह्मण के मध्य एक-एक रविदास का विराजमान होना आदि सर्वाधिक प्रचलित हैं। इन अनुश्रुतियों में गुरु रविदास जी की भक्ति, संतभाव, सिद्धत्व तथा अनुपम ख्याति की छाया स्पष्टतः प्रतिबिम्बित हुई है।

रविदास के बारे में प्रचलित जनश्रुतियों से एक बात तो अवश्य सिद्ध होती है कि उनका प्रभाव काफी बड़े क्षेत्र में और बहुत गहरा था। उनके प्रभाव को समाप्त करने के लिए ही उनके साथ इस तरह की कथाएं रची गई हैं। बार-बार उनके साथ चमत्कार जोड़ गए हैं तथा बार-बार उनको एक सनातनी पंडित की तरह पूजा करता हुआ दिखाया गया है । इस सारी कवायद में रविदास में से असली रविदास निकाल कर उसकी जगह एक मघडंत कर्मकाण्डी रविदास लोगों के दिमागों में प्रतिष्ठित कर दिया जाता है। यदि रविदास का ऐसा प्राकल्पित जीवन ब्राह्मणवाद को मजबूती देता है तो फिर रविदास को अवतार घोषित करने में भी कोई हर्ज नहीं। इन किंवदंतियों को इसी नजरिये से रचा गया है। और यह भी सच है कि वे अपने मकसद में कामयाब भी हुए हैं। रविदास के नाम पर 'कुण्ड-निर्माण', मंदिर-निर्माण करके उनके अनुयायी उनके संदेश को धूमिल कर रहे हैं।

रविदास की जो तस्वीर-मूर्ति लोकप्रिय है उसमें उनका रूप भी बिल्कुल उसी तरह दमक रहा है जैसे कि निकम्मे-निठल्ले कथित संन्यासियों का दिखाई देता है। असल में हर वर्ग का एक संस्कार होता है। अच्छे खाते-पीते लोगों का इष्ट भी तो अच्छा खाता-पीता ही होगा। संत रविदास के हाथ से काम करने के औजार दूर करके उनके हाथ में माला पकड़ा दी गई और इसके पीछे कौन-सी विचारधारा रही होगी, यह सोचने की फुरसत रविदास के अनुयायियों को कहां? रविदास की तरह की असुविधा कोई क्यों ले ? रविदास के नाम पर एक भव्य भवन बना दिया और उनके जन्मदिन पर हलुवा-पूरी खा लेने में ही अपने कर्त्तव्य की इतिश्री समझ लेते हैं। इस जमाने में रविदास पर यह अहसान भी क्या कम है।

संत रविदास के संबंध में प्रचलित जनश्रुतियां-किंवदंतियां दलित समाज में खूब प्रचलित हैं, बल्कि यह कहना अधिक उचित होगा कि अधिकांश समाज अपने आदर्श महापुरुष को इन चमत्कारपूर्ण घटनाओं से ही जानता है। रविदास का कोई दोहा या पद किसी उनके अनुयायी को याद हो या न हो, लेकिन उनके जीवन से जुड़ी इन कपोल कल्पित व मनघड़ंत किस्सों का ब्यौरेवार जरूर पता होगा। यह कहना अतिश्योक्ति नहीं होगी कि रविदास वाणी को इन किंवदंतियों ने इस

 
20/दलित मुक्ति की विरासत:संत रविदास