पृष्ठ:दलित मुक्ति की विरासत संत रविदास.pdf/१८

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तरह से आच्छादित कर लिया है कि इनकी गर्द - गुबार के नीचे उनकी वाणी में व्याप्त समतावादी मानव समाज निर्माण का संदेश ढक सा गया है। गौर करने की व चिन्ता की बात यह है कि संत रविदास के प्रति श्रद्धा प्रकट करने के लिए प्रयोग की जा रही इन किंवदंतियों से उनके संदेश के विपरीत काम लिया जा रहा है । ब्राह्मणवादी विचारधारा में इतनी लोच रही है कि वर्चस्वी वर्ग के हितों की रक्षा के लिए अपने को बदलती रहती है। असल में तो ब्राह्मणवादी विचारधारा अपने विरुद्ध उठ रहे आंदोलनों, संघर्षों, विचारधाराओं को पैदा नहीं होने देना चाहती, उसके जन्म काल में ही उसे दबा देने का यत्न करती है, लेकिन यदि वह समाज में स्वीकृति पा जाए और उसका प्रभाव बढ़ने लगे तो वह उससे शत्रुता का व्यवहार त्यागकर उसे अपने में मिलाने की कोशिश करती है और स्वयं ही उसकी व्याख्याकार बन जाती है। यही विचारधारात्मक रणनीति संत रविदास जैसे संतों के साथ उसने बरती है। संत रविदास के ब्राह्मणवाद-विरोध को पीछे करके उनके ऐसे रूप को प्रतिष्ठापित करना जो स्वयं ब्राह्मणवाद के प्रवक्ता की तरह का काम करने लगे। ब्राह्मणवादी विचारधारा के सूक्ष्म तत्वों की पहचान करते हुए 'रविदास दर्शन' को उससे निजात दिलाने की जरूरत है। रविदास के विषय में प्रचलित किंवदंतियों- जनश्रुतियों के कथारस में निहित ब्राह्मणवाद को उनकी वाणी के अध्ययन, चिन्तन-मनन से दूर कर सकते हैं। रविदास के विचारों को हृदयंगम करने का सबसे विश्वसनीय साधन रविदास की वाणी ही है, उसे ही प्रतिष्ठिापित करना जरूरी है। संदर्भ 1. 2. 3. 4. 5. 6. 7. 8. 9. 10. - स्वामी रामानन्द शास्त्री व वीरेन्द्र पाण्डेय; संत रविदास और उनका काव्य, पृ. 49 धर्मपाल मैनी, रैदास, पृ. 13 - पृथ्वी सिंह आजाद, रविदास दर्शन; पृ. - 71 - डा. सरनदास भनोत; रविदास वचन सुधा; पृ. 12 स्वामी रामानन्द शास्त्री व वीरेन्द्र पाण्डेय, संत रविदास और उनका काव्य, पृ. - 73 - सावित्री शोभा; हिन्दी भक्ति साहित्य में सामाजिक मूल्य एवं सहिष्णुतावाद; पृ. - 9 धर्मपाल मैनी, रैदास, पृ. 19 कंवल भारती; सन्त रैदास; एक विश्लेषण; पृ. 30 धर्मपाला मैनी, रैदास; पृ. 24 स्वामी रामानन्द शास्त्री व वीरेन्द्र पाण्डेय; संत रविदास और उनका काव्य, पृ. - 89 संत रविदास : जीवन परिचय / 21