पृष्ठ:दलित मुक्ति की विरासत संत रविदास.pdf/१९

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11. (4 'नाभादा जी ने अपनी भक्तमाल में गुरु रविदास जी के विषय में जो प्रशस्ति गई है वह उनके व्यक्तित्व तथा वाणीगत विचारधारा का पूर्ण एवं सत्य-सत्य उद्घाटन करता है। वे लिखते हैं कि रविदास जी की विमल वाणी संदेह की ग्रंथि को सुलझाने में सहायक है। रविदास जी ने सदाचार के जिन नियमों के उपदेश दिए थे वे वेद शास्त्रादि के विरुद्ध नहीं थे। उन्हें नीर-क्षीर विवेक वाले संत महात्मा लोग भी अपनाते थे। उन्होंने भगवत्कृपा के प्रसाद से अपनी जीवितावस्था में ही परमगति प्राप्त कर ली । इनकी चरणधूलि की वंदना लोग अपने वर्णाश्रम का अभिमान त्यागकर भी किया करते थे।" संदेह ग्रंथि खंडन निपुन बानि बिमल रविदास की। सदाचार स्रुतिबचन अबिरूध उचारयो । नीर छीर बिबरन परम हंसनि उर धरयो । भगवत कृपा प्रसाद परमगति इहि तनु पाई । राज सिंहासन बैठि ज्ञाति परतीति दिखाई || बर्नास्त्रम अभिमान तजि पद राज बंदहि जासकी। संदेह ग्रंथि खंडन निपुन बानि बिमल रविदास की ।।" 12. स्वामी रामानन्द शास्त्री व वीरेन्द्र पाण्डे; संत रविदास और उनका काव्य; पृ. 144 सावित्री चन्द्र शोभा; हिन्दी भक्ति साहित्य में सामाजिक मूल्य एवं सहिष्णुतावाद; पृ.-2 13. 14. स्वामी रामानन्द शास्त्री व वीरेन्द्र पाण्डे; संत रविदास और उनका काव्य, पृ. 147 15. पृथ्वी सिंह आजाद; रविदास दर्शन; पृ. -70 22 / दलित मुक्ति की विरासत : संत रविदास