पृष्ठ:दलित मुक्ति की विरासत संत रविदास.pdf/२१

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वाले सामाजिक उत्पीड़न का विरोध करता था । समय व क्षेत्र की दृष्टि से हिनादी में भक्तिकाव्य से अभिहित किए जाने वाले साहित्य का फलक व्यापक है। हिन्दी साहित्य के इतिहासकारों ने भक्तिकाल को हिन्दी साहित्य का 'स्वर्ण युग' कहा है। इसकी उत्पति के कारणों को तलाशने की कोशिश की है। ‘‘किसी ने उसे मुसलमानों के आक्रमण और अत्याचार की प्रतिक्रिया माना है, तो किसी ने ईसाइयत की देन, किसी को उसमें निराश और हतदर्प जाति की कुंठाग्रस्त और अन्तर्मुखी चेतना की अभिव्यक्ति दिखाई दी तो किसी को वह तत्कालीन परिस्थितियों और सामाजिक असंतोष की उपज प्रतीत हुआ, किसी ने उसके मूल में यौगिक और तांत्रिक प्रवृत्तियों का प्रसार देखा और किसी ने लोकमत के शास्त्रीय आवरण की प्राप्ति | "2 आचार्य रामचन्द्र शुक्ल के इस विचार को हिन्दी में काफी मान्यता मिली कि भक्ति साहित्य की उत्पत्ति का कारण मुसलमानों का हिन्दुओं पर अत्याचार था और कवियों ने भक्ति के माध्यम से हिन्दू धर्म की रक्षा करने के लिए भक्ति को अपनाया। यद्यपि आचार्य हजारीप्रसाद द्विवेदी ने आचार्य शुक्ल के मत को अपने तर्कों से तथ्यहीन साबित किया। उन्होंने कहा कि भक्ति आंदोलन की उत्पति मुसलमानों के अत्याचारों के कारण नहीं हुई, क्योंकि भक्ति का जन्म दक्षिण भारत में हुआ और दक्षिण में न तो मुसलमानों के आक्रमण हुए थे और न ही तब तक मुसलमान दक्षिण तक गए थे। प्रसिद्ध है कि 'द्राविड़ भक्ति उपजी, लाए रामानन्द' । तथ्य व तर्कपूर्ण न होने पर भी आचार्य शुक्ल का मत अधिकांश हिन्दी के शोधार्थियों व अध्यापकों की मानसिकता का हिस्सा बना रहा है। इस मत के अलावा उनको किसी अन्य मत को स्वीकार करने में काफी मशक्कत करनी पड़ती है। आचार्य रामचन्द्र शुक्ल का मत उनको सहज-स्वाभाविक सा लगता है। इसका कारण हिन्दी क्षेत्र में साम्प्रदायिक इतिहास चेतना का प्रसार है, जो समकालीन राजनीतिक हितों की पूर्ति के लिए इतिहास का साम्प्रदायिकरण करती रही है । अपने समय के छ:- सात सौ साल के बाद भी प्रासंगिक भक्तिकाल का जीवन्त साहित्य मात्र प्रतिक्रिया में नहीं रचा जा सकता और 'पराजित व निराश मन' की उपज तो कतई नहीं हो सकता। भक्तिकाल का साहित्य किसी समुदाय विशेष का विरोध करने के लिए नहीं पैदा हुआ, बल्कि उसके सकारात्मक उद्देश्य व संकल्प थे, कुछ आदर्श व मूल्य थे, जिनको समाज में स्थापित करना चाहते थे। यह साहित्य केवल तत्कालीन रचनाकारों के मन की उपज भी नहीं था, बल्कि यह ठोस सामाजिक-आर्थिक स्थितियों में उत्पन्न हुआ था और इसकी जड़ें तत्कालीन सामाजिक स्थितियों में थी। आचार्य रामचन्द्र शुक्ल ने मुसलमानों के आगमन को 24 / दलित मुक्ति की विरासत : संत रविदास