पृष्ठ:दलित मुक्ति की विरासत संत रविदास.pdf/२२

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एक अनिवार्य बुराई की तरह से देखा, उनके आने से यहां के जीवन में क्या अन्तर आया, इसे देखने में वे चूक गए और परिस्थितियों पर समग्रता से विचार किये बिना बहुत सरलीकृत ढंग से भक्तिकाल के साहित्य की उत्पत्ति को साम्प्रदायिक रंग दे दिया। भारत में सम्प्रदाय के आधार पर हिन्दू और मुसलमान के बीच वैमनस्य व दंगे-फसाद अंग्रेजी शासन के दौरान आरम्भ हुए। अपने शासन को टिकाये रखने के लिए साम्राज्यवादी अंग्रेजी शासकों ने जनता में फूट डालने के लिए लोगों की धार्मिक भावनाओं को उकसाना - भड़काना शुरू किया। इसके लिए उन्होंने इतिहास को तोड़-मरोड़कर इस तरह से प्रस्तुत किया कि पूरा मध्यकाल हिन्दू-मुस्लिम संघर्ष के तौर पर पेश किया । इतिहास का काल-विभाजन व नामकरण धर्म के आधार पर ' हिन्दू काल' व 'मुस्लिम काल' के तौर पर किया, कि जिसमें किसी धर्म विशेष के लोगों का शासन हो और दूसरे धर्म के लोग उनके शासित हों। शासक अपना साम्राज्य स्थापित करते हैं, चाहे वे किसी भी धर्म से ताल्लुक रखते हों। वे अपने धर्म के आधार पर शासन नहीं करते। अंग्रेजी शासकों ने बड़े चालाकी पूर्ण ढंग से मध्यकालीन शासकों की लड़ाइयों को हिन्दू व मुसलमान की लड़ाई के तौर पर पेश किया, जबकि हिन्दू शासक का दूसरे हिन्दू शासक से लड़ने तथा मुसलमान शासकों के मिलकर किसी शासक से लड़ने के उदाहरणों से इतिहास भरा पड़ा है। भारत में बाबर आया तो वह मुस्लिम शासक इब्राहिम लोधी लड़ा, हुमायू और शेरशाह सूरी के बीच घमासान लड़ाई हुई और दोनों मुसलमान थे। महाराणा प्रताप और अकबर की लड़ाई में अकबर का सेनापति हिन्दू राजपूत मानसिंह था, तो महाराणा प्रताप का सेनापति मुसलमान पठान हकीम सूर खान था। गुरु गोबिन्द सिंह की मुगल शासक औरगंजेब के साथ लड़ाई थी तो कितने ही मुसलमानों ने गुरु गोबिंद सिंह का साथ दिया था । शासकों की इन लड़ाइयों के कारण राजनीतिक थे, लेकिन अंग्रेजों ने इनको धार्मिक लड़ाइयों की तरह से प्रस्तुत किया । हिन्दू और मुसलमान में वैमनस्य पैदा करने के लिए अंग्रेजों ने बहु प्रचारित किया कि मुसलमानों ने हिन्दुओं के मंदिरों को ध्वस्त करके हिन्दुओं का अपमान किया। असल में राजाओं की लड़ाइयों की वजह धार्मिक नहीं, बल्कि राजनीतिक थी, उसी तरह धर्म-स्थलों को गिराने की वजह भी धार्मिक नहीं थी, बल्कि राजनीतिक व आर्थिक थी । उदाहरण के लिए महमूद गजनी ने सोमनाथ के मंदिर को लूटा तो उसका कारण धार्मिक नहीं, बल्कि आर्थिक था। यदि वह धार्मिक कारण से ऐसा करता तो उसके हजारों मील के सफर में सैंकड़ों मंदिर आए, संत रविदास : युगीन परिवेश / 25