लेकिन उसने किसी को भी नहीं छुआ। गौर करने की बात यह भी है कि उसकी सेना में बहुत बड़ी संख्या हिन्दू सिपाहियों की थी, उसके बारह सेनापतियों में पांच हिन्दू थे। औरगंजेब ने मंदिरों को गिराया, लेकिन उसने उज्जैन में महाकालेश्वर, चित्रकूट में बाला जी, गुहावटी में उमानन्द मंदिर, शत्रुंजय में जैन मंदिर तथा उत्तर भारत के गुरुद्वारों को अनुदान भी दिए । दिलचस्प बात यह है कि हिन्दू राजाओं ने भी मंदिरों को तुड़वाया, काश्मीर के राजा हर्षदेव ने मंदिरों की मूर्तियों को हटाने के लिए 'देवोत्पतनायक' नामक अधिकारी नियुक्त किया, जो मंदिरों से मूर्तियां हटाता था। इस बात के भी उदाहरण हैं कि मुस्लिम शासकों ने हिन्दू धर्म-स्थलों की रक्षा की। मराठों ने श्रीरंगपट्टनम का मंदिर लूटा और क्षतिग्रस्त किया तो मुस्लिम शासक टीपू सुल्तान ने उसकी मुरम्मत करवाई। धर्म-स्थलों को गिराकर दूसरे धर्म का अनादर करना व उसके मानने वालों का अपमान करने में कोई तथ्य नहीं है, क्योंकि मुस्लिम शासकों ने मस्जिद भी गिरवाई हैं, यदि वे इतने कट्टर धार्मिक थे और धार्मिक कारणों से मंदिर गिरा रहे थे तो वे अपने ही धर्म के पूजा-स्थलों को क्यों ध्वस्त करते ? दरअसल मध्यकाल में शासक अपने साम्राज्य के विस्तार के लिए दूसरे शासकों पर आक्रमण करते थे और उसकी सत्ता के समस्त प्रतीकों को ध्वस्त करते थे, इसीलिए राजाओं ने अपने राज्य की सीमा में धर्म-स्थल नहीं गिरवाए और जहां ऐसा किया वहां किसी धर्म को नीचा दिखाना नहीं, बल्कि राजनीतिक वर्चस्व के लिए ऐसा किया । मध्यकाल में हिन्दू व मुसलमानों में वैमनस्य के मिथ को प्रचारित करने के लिए तलवार के जोर पर धर्मान्तरण करने को प्रचारित किया गया । "यह आरोप भी सच नहीं है कि मुसलमान शासक ने हिन्दुओं का जबरन धर्मान्तरण करवाया; उससे न सिर्फ मुस्लिम सत्ता का स्थायित्व खतरे में पड़ जाता बल्कि पूरा माहौल दूषित हो जाता। हर शासक, सदैव दरबारी साजिशों के खतरे के साए में रहता था और जाहिर है कि आम जनता में भारी असंतोष पैदा करने जैसा कोई कदम उठाना उसके लिए भारी पड़ जाता क्योंकि बड़े पैमाने पर धर्मान्तरण करवाने से अनिवार्य तौर पर ऐसी हालत खड़ी हो जाती । सुल्तान की पहली और फौरी जिम्मेदारी होती थी अपने अवाम के बीच शान्ति और सौमनस्य स्थापित करना। और, अब यह बात सर्वसम्मत रूप से मानी जा रही है कि कुछ शासकों को अपवादस्वरूप छोड़ दिया जाए तो न खिलजियों (1290-1320) ने, न तुगलकों (1320-1412) ने, न लोदियों (1451-1526) ने और न ही महान मुगल बादशाहों ( 1526-1707 ) ने धर्मान्तरण को प्रोत्साहन दिया; यह काम या तो सूफियों ने किया या व्यापारियों ने।3 26 / दलित मुक्ति की विरासत संत रविदास