अंग्रेजों ने हिन्दुओं व मुसलमानों में विद्वेष पैदा करने के लिए धर्मान्तरण को भी तूल दिया और इस झूठ को जोर-शोर से प्रचारित किया कि तलवार के जोर पर इस्लाम का विस्तार हुआ, जबकि ऐतिहासिक तथ्य इसके विपरीत हैं। इस्लाम के प्रसार का कारण मुसलमान शासकों के अत्याचार नहीं थे, बल्कि हिन्दू धर्म की वर्ण-व्यवस्था थी, जिसमें समाज की आबादी के बहुत बड़े हिस्से को मानव का दर्जा ही नहीं दिया गया । इस्लाम में इस तरह के भेदभाव नहीं थे, इसलिए अपनी मानवीय गरिमा को हासिल करने के लिए हिन्दू धर्म में निम्न कही जाने वाली जातियों ने धर्म-परिवर्तन किया । धर्म परिवर्तन में सूफियों के विचारों की भूमिका है, न कि मुस्लिम शासकों की क्रूरता व कट्टरता की । जो क्षेत्र मुस्लिम शासकों का गढ़ था, वहां धर्मान्तरण कम हुआ, जबकि उनके सत्ता केन्द्रों से दूर धर्म परिवर्तन अधिक हुआ। दिल्ली व आगरा के आसपास मुसलमानों की संख्या दस प्रतिशत से ज्यादा नहीं है, लेकिन जो आज पाकिस्तान है वहां जनसंख्या का बहुत बड़ा हिस्सा मुसलमान बना था, जबकि मुस्लिम सत्ता का केन्द्र दिल्ली-आगरा रहा । विख्यात पाकिस्तानी इतिहासकार एस. एम. इकराम ने टिप्पणी की है : “अगर मुसलमानों की आबादी के फैलाव के लिए मुसलमान सुल्तानों की ताकतें ज्यादा जिम्मेदार हैं तो फिर यह अपेक्षा बनती है कि मुसलमानों की अधिकतम आबादी, उन क्षेत्रों में होनी चाहिए, जो मुस्लिम राजनीति शक्ति के केंद्र रहे हैं। लेकिन दरअसल ऐसा नहीं है। दिल्ली, लखनऊ, अहमदाबाद, अहमदनगर और बीजापुर, यहां तक कि मैसूर में भी, जहां कि कहा जाता है कि टीपू सुल्तान ने जबरन लोगों को इस्लाम में धर्मान्तरित करवाया, मुसलमानों का प्रतिशत बहुत कम है। राजकीय धर्मान्तरण के परिणामों को इसी तथ्य से नापा जा सकता है कि मैसूर राज्य में मुसलमान बमुश्किल पूरी आबादी का पांच प्रतिशत हैं। दूसरी ओर, जबकि मालाबार में इस्लाम कभी भी राजनीतिक शक्ति नहीं रहा, लेकिन आज भी मुसलमान कुल आबादी के करीब तीस प्रतिशत हैं। उन दो प्रदेशों में जहां मुसलमानों की सघनतम आबादी है यानी आधुनिक पूर्वी और पश्चिमी पाकिस्तान में इस बात के साफ- स्पष्ट सबूत हैं कि धर्मान्तरण उन रहस्यवादी सूफी - सन्तों की वजह से हुआ जो सल्तनत के दौरान हिन्दुस्तान आते रहे । पश्चिमी क्षेत्र में तेहरवीं सदी में यह प्रक्रिया उन हजारों धर्मवेत्ताओं, सन्तों, धर्म प्रचारकों की वजह से ज्यादा सुकर बनी जो मंगोलों के आतंक से पलायन कर भारत आए।' 114 राज घरानों से संबंध बनाने व सत्ता में भागीदारी करने के लिए उच्च जातियों के लोगों ने धर्म परिवर्तन किया, लेकिन निम्न जातियों ने अपनी मानवी गरिमा का अहसास प्राप्त करने के लिए धर्म बदला । विशेष बात यह रही कि धर्म बदलने से संत रविदास : युगीन परिवेश / 27