पृष्ठ:दलित मुक्ति की विरासत संत रविदास.pdf/२५

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इनकी संस्कृति व सोच में कोई विशेष अन्तर नहीं आया । ये उन्हीं रिवाजों व प्रथाओं का पालन करते रहे । हरियाणा - राजस्थान के मेवों की संस्कृति से इस बात का अनुमान लगाया जा सकता है। दिल्ली में तुर्क सल्तनत की स्थापना के समय से ही सुल्तानों ने अपना शासन शरीयत (धार्मिक कानून) के आधार पर नहीं चलाया, बल्कि "शरीयत की जगह राजनीतिक और सामरिक जरूरतों को ध्यान में रखा गया था। सुल्तान इल्तुमिश के बारे में यह प्रचलित है कि उसके लिए यह हर्गिज जरूरी नहीं था कि वह विश्वास को केन्द्र में रखे । उसके लिए इतना ही काफी था कि उसका अपना विश्वास बना रहे । बलबन के बारे में तो यहां तक कहा जाता है कि वह एक कदम ओर आगे चला गया था। उसने सुल्तान से यह भी अपेक्षा नहीं की कि उसका कोई विश्वास हो ही और न ही उसे किसी धर्म या मत को संरक्षण देने की जरूरत है। उसके लिए सबसे महत्त्वपूर्ण वक्तव्य दिया कि उसने कभी इस बात पर ध्यान नहीं दिया कि उसके निर्णय शरीयत के मुताबिक हैं या नहीं। उसने जो कुछ भी राज्य के हित में उचित समझा, उसी का पालन किया । मुहम्मद बिन तुगलक ने धर्म विशारदों और धार्मिक कानून के संरक्षकों को शासन के ऊपर हावी नहीं होने दिया, बल्कि वह हमेशा ही दार्शनिकों और तर्कशास्त्रियों की संगत पसंद करता था । "5 शासक अपने धार्मिक कानून के अनुसार राजनीतिक निर्णय नहीं लेते थे, बल्कि राजनीति के अनुसार वे अपने राज्य के फैसले करते थे। उलेमा और राजाओं के दृष्टिकोण में अन्तर था । अलाऊद्दीन खिलजी की काजी मुघीस से वार्तालाप से इसका अनुमान लगाया जा सकता है । "उसने कहा मौलाना मुघीस ! यद्यपि मुझे कोई ज्ञान नहीं है और मैंने कोई पुस्तक नहीं पढ़ी है, फिर भी मैं एक मुसलमान के रूप में पैदा हुआ था और मेरे बुजुर्ग कितनी ही पीढ़ियों से मुसलमान हैं। विद्राहों, जिनमें हजारों लोग मारे जाते हैं, को रोकने के लिए मैं लोगों को आदेश देता हूं जो मुझे राज्य और उसके लाभकारी लगते हैं। लेकिन आजकल के लोग दुःसाहसी और अवज्ञाकारी हो गए हैं और मेरे आदेशों का सही पालन नहीं करते, इसलिए यह आवश्यक हो गया है कि मैं उनसे आदेशों की पालना सुनिश्चित करने के लिए उन्हें कड़ी सजा दूं। मैं वे आदेश जारी करता हूं जो मुझे राज्य के लिए लाभकारी और विभिन्न परिस्थितियों में उचित प्रतीत होते हैं। मैं नहीं जानता कि इन आदेशों की शरीयत इजाजत देता है या नहीं। मैं नहीं जानता कयामत के दिन खुदा मेरे साथ क्या बर्ताव करेगा।' 16 हिन्दी के भक्तिकाल पर विचार करते हुए अधिकांश विद्वानों ने इतिहास के बारे में तथ्य आधारित स्वतंत्र सोच बनाए बिना और अंग्रेजी साम्राज्यवादी हितों को 28 / दलित मुक्ति की विरासत संत रविदास