पृष्ठ:दलित मुक्ति की विरासत संत रविदास.pdf/२७

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मुसलमानों के आगमन से यहां के लोगों के जीवन में नई दृष्टि का संचार हुआ। यहां के लोग नई तकनीक व वस्तुओं से वाकिफ हुए। खेती की व्यवस्था में परिवर्तन से जीवन में मूलभूत परिवर्तन हुआ। सड़कों व नहरों के निर्माण से सामाजिक जीवन में तुलनात्मक रूप से समृद्धि आई । विशेष तौर पर समाज के वे वर्ग अच्छी हालत में पहुंचे, जो कारीगर व श्रमिक थे। इसी वर्ग की आकांक्षाएं कबीर, रविदास व अन्य संतों की कविताओं में नजर आती हैं। संत कबीर, नानक, रैदास, दादू आदि संतों का तेजस्वी काव्य सांस्कृतिक सम्मिश्रण की स्थितियों से उपजा काव्य है, न कि साम्प्रदायिक द्वेष व घृणा से, जैसा कि साम्राज्यवादी व साम्प्रदायिक इतिहास दृष्टि प्रस्तुत करती है। भारत का समाज दूसरे समाज के सम्पर्क में आया, विचारों का आदान-प्रदान हुआ, व्यापार के नए क्षेत्र खुले, जिसने भारतीय समाज के विभिन्न वर्गों को प्रभावित किया । “तेरहवीं शताब्दी तक भारत में अफगान शासन स्थापित हो चुका था । ईरान, अफगानिस्तान, ईराक एवं अरब के अन्य क्षेत्रों से सैनिक, व्यापारी एवं जिज्ञासु विद्वान विभिन्न उद्देश्यों से भारत आया- जाया करते थे। अल-बरूनी सदृश विद्वानों ने भारतीय समाज एवं संस्कृति का विस्तृत अध्ययन भी किया था। इस काल में (दसवीं से तेरहवीं शताब्दियों के बीच) कई भारतीय दार्शनिक, वैज्ञानिक एवं साहित्यिक कृतियों का अनुवाद अरबी एवं फारसी में हो चुका था। प्रसिद्ध सूफी संत अब्दुल कलंदरी ने ग्यारहवीं शताब्दी में भारतीय दर्शन के सुप्रसिद्ध ग्रंथ 'योग-वासिष्ठ' का फारसी में अनुवाद किया था। खलीफा हारून- अल - रशीद के समय में पंचतंत्र का अनुवाद अरबी एवं फारसी, दोनों भाषाओं में हो चुका था । इन भाषाओं में इस पुस्तक का नाम ‘कलीला -ओ-दिमना' पड़ा । इसकी कथाएं ईरान, ईराक एवं पश्चिम एशिया के अन्य क्षेत्रों में अत्यन्त लोकप्रिय हुई। शेख फरीदुद्दीन अत्तार के 'इलाहीनामा' एवं 'मुसीबतनामा में पंचतंत्र एवं कथा-सरित्सागर की कई कथाएं कुछ परिवर्तन के साथ मिलती हैं। मौलाना रूमी की 'मसनवी' में भी पंचतंत्र की कई कथाओं का समावेश मिलता है। भक्तिकाल के संतों ने परम्परागत तौर पर प्रचलित संस्थागत हिन्दू धर्म और इस्लाम की संरचनाओं के स्थान पर नई प्रणालियों को विकसित किया । वे दोनों धर्मों के धार्मिक आड़म्बरों और पाखण्डों का विरोध करते थे। धर्म के दायरे में रहते हुए भी उसको नई तरह से व्याख्यायित करने की जद्दोजहद की अभिव्यक्ति संत साहित्य में होती है । जिन निम्न जातियों के लोगों को मुख्य सड़कों पर चलने का अधिकार भी नहीं था, शिक्षा का अधिकार भी नहीं था और जिनको अपनी पहचान बताकर 30 / दलित मुक्ति की विरासत: संत रविदास