पृष्ठ:दलित मुक्ति की विरासत संत रविदास.pdf/२८

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शहर में प्रवेश करना पड़ता था उन वर्गों से संबंधित रचनाकर अब सरेआम वर्चस्वी वर्ग के लोगों को शास्त्रार्थ की चुनौती देते हैं, आखिर इस तरह के आत्मविश्वास का सामाजिक सांस्कृतिक कारण व आधार तत्कालीन समाज में इनकी हैसियत के अलावा और क्या हो सकता है ? निम्न जातियों से इतने संतों का आना और कबीर - रैदास का आत्मविश्वास इन वर्गों की सामाजिक-आर्थिक स्थिति की ओर भी संकेत करता है । परम्परागत तौर पर प्रचलित वर्चस्वी विचारों को चुनौती पेश करने वाली सामाजिक शक्तियां जो नए विचारों व परिवेश का स्पर्श पाकर विकसित हो उठी थी, उन्हीं की आकांक्षाओं को संतों की कविताएं वाणी प्रदान करती हैं। "प्रो. मुहम्मद हबीब ने अपने एक निबन्ध में घटित हुए परिवर्तनों के विश्लेषण का प्रयास किया है। संक्षेप में उनकी स्थापना है कि इस्लाम एक ऐसा धर्म था जो शहरी वातावरण के लिए उपयुक्त था । इसके कानून ने जिसमें संविदा की अवधारणा पर विशेष बल था, जातिगत नियमों की कठोर पाबन्दी का भेदन किया। अतः तुर्की आक्रमण ने कारीगरों को पुराने प्रतिबंधों से मुक्त कर दिया तथा व्यापार तथा वाणिज्य के विकास के लिए एक नया आधार किया। इस दृष्टिकोण के आधार पर तुर्की विजयों ने 'उपभोग के लिए उत्पादन' की स्थिति को 'बाजार के लिए उत्पादन' में बदलने की प्रक्रिया को शुरू किया। कारीगरों के इस आर्थिक महत्त्व की अभिवृद्धि की अभिव्यक्ति, जो उक्त परिवर्तन का परिणाम रही होगी। पन्द्रहवीं-सोलहवीं शताब्दियों में भक्ति आंदोलन में उनकी सहभागिता के रूप में देखी जा सकती है। " मूरलैंड ने भी अपने अध्ययनों में तुर्कों के शासनकाल को सामंतीय व्यवस्था के टूटने के रूप में देखा है। उनका कहना है कि यह परिवर्तन सल्तनत काल में प्राचीन शासक वर्ग के टूटने के फलस्वरूप अभिजात शासन वर्ग की संरचना और प्रकृति में आए परिवर्तन तथा किसानों को नकद भुगतान की नियमित प्रथा के फलस्वरूप मुद्रा के व्यापक प्रचलन के कारण हुआ। यह भी माना जाता है कि शहर और गांव के बीच बड़े पैमाने पर चलने वाला व्यापार भी चौदहवीं शताब्दी में ही विकसित हुआ था। इरफान हबीब ने इन रूपांतरणों के लिए तुर्कों के आने के बाद नई प्रौद्योगिकी के प्रचलन का बहुत बड़ा योगदान माना है। भारत में चर्खे का इस्तेमाल तेरहवीं शताब्दी से आरंभ हुआ है। चर्खा निश्चित रूप से और धुनियां की कमान संभवतः 13-14वीं शताब्दियों में बाहर से भारत में आए होंगे। इसी प्रकार तुर्क विजय के साथ रहट का प्रचलन कृषि की उत्पादन वृद्धि में बहुत सहायक हुआ है। कागज का पहला टुकड़ा भारत में तेरहवीं शताब्दी के अन्त में दिखाई दिया संत रविदास युगीन परिवेश / 31