पृष्ठ:दलित मुक्ति की विरासत संत रविदास.pdf/३२

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की साम्राज्यवादी दृष्टि का तथा साम्प्रदायिक आधार पर इस देश को विभाजित करने के उनके डिजाइन का भी जाने-अनजाने में प्रभाव है। आधुनिक काल में साम्प्रदायिक आधार पर समाज को बांटने और विभिन्न धर्मों के लोगों में वैमनस्य व घृणा पैदा करने के लिए इसका प्रयोग किया गया। अब भी साम्प्रदायिकता पर आधारित राजनीति खत्म नहीं हुई है, इसलिए अपनी राजनीति को वैधता देने के लिए अभी भी यह कहा जाता है कि मध्यकाल में हिन्दुओं और मुस्लिमों के बीच नफरत और विद्वेष था । यदि समाज में धर्म के आधार पर विद्वेष होता तो तत्कालीन साहित्यकार इसका जरूर ही उल्लेख करते । असल में धर्म के नाम पर शासकों ने लोगों की भावनाओं का हर युग में शोषण किया है। भक्तिकालीन संत - कवियों ने धर्म के आधार पर मनुष्य में भेदभाव करने को गलत ही ठहराया है। हिन्दुओं और मुसलमानों की एकता को उद्घाटित भी किया है । रविदास हिन्दी के प्रसिद्ध कवि हैं उन्होंने अपने समय की केन्द्रीय समस्याओं को उठाया है। उनकी वाणी में साम्प्रदायिक द्वेष का कोई उदाहरण नहीं मिलता, बल्कि ऐसी परम्पराओं का वर्णन अवश्य मिलता है जिससे यह बात स्पष्ट होती है कि हिन्दू और मुसलमानों में साम्प्रदायिक आधार पर कोई झगड़ा नहीं था, बल्कि दोनों एक-दूसरे के धार्मिक विश्वासों का आदर करते थे । रविदास ने स्पष्ट तौर पर कहा कि राम और रहीम, कृष्ण और करीम, ईश्वर और खुदा में कोई अन्तर नहीं है । ये सब एक ही हैं। ये मनुष्य के मन में ही बसते हैं, इनको प्राप्त करने के लिए घर त्यागने की जरूरत नहीं है। रविदास के लिए ईश्वर की प्राप्ति किसी कर्मकाण्ड का हिस्सा नहीं है, बल्कि उसके लिए अपने आचरण को पवित्र करने की जरूरत है। राघो क्रिस्न करीम हरि, राम रहीम खुदाय । 'रविदास' मेरे मन बसहिं, कहुं खोजहूं बन जाय ॥ संत रविदास ने बार-बार इस बात को रेखांकित किया है कि जिस ईश्वर को हिन्दू मानते हैं और जिस खुदा को मुसलमान मानते हैं वे कोई अलग-अलग नहीं हैं। वे सब एक ही हैं। सबका मालिक एक ही है, जो लोग ईश्वर के नाम पर लड़ते हैं वे ईश्वर की ही अवहेलना करते हैं। केशव, कृष्ण और करीम सभी एक ही तत्त्व है। रविदास इस बात पर जोर देने के लिए ही बार-बार कहते हैं कि उन्होंने विचार करके देख लिया है कि सिर्फ नाम का ही फर्क है, तत्त्वत: कोई अन्तर नहीं है। संत रविदास धर्म और साम्प्रदायिकता / 35 [: