पृष्ठ:दलित मुक्ति की विरासत संत रविदास.pdf/३४

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इस चालाकी को पहचान लिया और साफ तौर पर कहा कि हिन्दू और मुसलमान दोनों में कोई मूलभूत अन्तर नहीं है। कोई प्राकृतिक अन्तर भी नहीं है । हिन्दू व मुसलमान दोनों के दो-दो हाथ, दो- दो पैर, दो-दो काल और दो-दो आंखें हैं । जब दोनों की बनावट एक जैसी है तो दोनों को अलग कैसे माना जाए ? मूलत: दोनों एक ही हैं, उनमें कोई अन्तर नहीं है जिस तरह सोने और सोने के कंगन में कोई अन्तर नहीं है। सोने से ही कंगन बना है, उसी तरह हिन्दू और मुसलमान में कोई अन्तर नहीं है, दोनों एक ही तत्त्व की उपज हैं। रविदास ने कहा कि हिन्दू माना जाने वाला ब्राह्मण और मुसलमान माना जाने वाला मुल्ला सबको एक ही नजर से देखना चाहिए, उनमें कोई मूलभूत अन्तर नहीं है । जब सभ करि दो हाथ पग, दोउ नैन दोउ कान। 'रविदास' पृथक कैसे भये, हिन्दू मुसलमान ॥

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'रविदास' कंगन अरू कनक मंहि, जिमि अंतर कछु नांहि । तैसउ अंतर नहीं, हिन्दुअन तुरकन मांहि ॥

'रविदास' उपजड़ सभ इक नूर तें, ब्राह्मण मुल्ला शेख | सभ को करता एक है, सभ कूं एक ही पेख ॥ रविदास ने इस बात को पहचान लिया था कि हिन्दू और मुसलमान के आधार पर भेदभाव करना असल में जन सामान्य की एकता को तोड़ना है। शासक वर्ग अपना शासन कायम रखने के लिए जन-सामान्य की एकता तोड़ते हैं और शासित-वर्ग की मुक्ति एकता को कायम रखने में हैं। शासक वर्ग द्वारा धर्म के आधार पर जो विभाजन करना चाहा था रविदास ने समाज में एकता बनाए रखने के लिए उसका विरोध किया। धर्म के नाम पर समाज में वैमनस्य पैदा करना मानवता के प्रति अपराध है, जबकि धर्म के आधार पर कोई भेद ही नहीं है। संत रविदास ने हिन्दू और मुस्लिम में कोई अन्तर नहीं किया । 'रविदास' पेखिया सोध करि, आदम सभी समान । हिन्दू मुसलमान कऊ, स्त्रिष्टा इक भगवान

मुसलमान सों दोसती, हिंदुअन सों कर प्रीत । 'रविदास' जोति सभ राम की, सभ हैं अपने मीत ॥

संत रविदास धर्म और साम्प्रदायिकता / 37