पृष्ठ:दलित मुक्ति की विरासत संत रविदास.pdf/३८

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।

हिन्दु तुरुक की एक राह है सतगुरु है बताई | कहै कबीर सुनो हो संतों राम न कहेउ खोदाई ॥ गुरु नानक ने हिन्दू और मुसलमान में कोई अन्तर नहीं किया। उन्होंने कहा कि बेईमान व्यक्ति ईश्वर के नाम पर लड़ते हैं । बन्दे एक खुदाय के हिन्दु मुसलमान, दावा राम रसूल कर, लडदे बेईमान । ' दादू दयाल ने हिन्दू और मुसलमान में कोई अन्तर नहीं माना | दादूदयाल अल्लाह और राम में कोई भेद नहीं करते थे, उनके लिए ये दोनों बराबर थे । वे एक ईश्वर को मानते थे, मंदिर-मस्जिद के झगड़े को झूठा समझते थे । वे मूल तत्व को पकड़ने की बात करते थे। दादूदयाल ने मंदिर और मस्जिद दोनों का ही विरोध किया है, क्योंकि वे धर्म के आंतरिक स्वरूप में विश्वास करते थे और बाहरी कर्मकाण्डों का विरोध करते थे । अलह कहो, भावे राम कहो, डाल तजो, सब मूल गहो ।

दोनों भाई हाथ, पग, दोनों भाई कान दोनों भाई नैन हैं, हिन्दु मुसलमान ।

दादू ना हम हिन्दू होहिंगें, ना हम मुसलमान, षट् दर्शन में हम नहीं, हम राते रहिमान । दादूदयाल ने ईश्वर को एक माना, उसको अनेक नामों से राम, रहीम, केशव, गोबिन्द, गोपाल, गोसाई, साई, रब्ब, अल्लाह, ओंकार, वासुदेव, परमानन्द, साहिब और सुल्तान, गरीब - निवाज तथा बंदिछोर नामों से संबोधित किया : अलख इलाही एक तूं, तूं ही राम रहीम । तूं ही मालिक मोहना, केशव नाम करीम |

कादिर करता एक तूं, तूं साहिब सुल्तान । पलटूदास ने भी संत रविदास की तरह धर्म के आधार पर व्यक्ति-व्यक्ति में कोई अन्तर नहीं किया। वे दोनों को ही अपनी फसल मानते थे और दोनों को बराबर का महत्व देते थे 1 मुसलमान है रब्बी मेरा हिन्दू भया खरीफ | हिन्दू भया खरीफ दोऊ हैं फसिल हमारी ॥ संत रविदास धर्म और साम्प्रदायिकता / 41