पृष्ठ:दलित मुक्ति की विरासत संत रविदास.pdf/३९

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दोनों को समझाया ज्ञान के दफ्तर खोल । मुसलमान हैं रब्बी मेरी हिन्दू भया खरीफ | संत मलूकदास ने धर्म के आधार पर अन्तर नहीं कियाऔर सबको एक ही तत्व की उपज माना है। सर्वव्यापी एक कोहरा, जाकी महिमा और न पारा । हिन्दु तुरुक का एकै करता, एकै ब्रह्मा सबन को भरता ॥ रविदास व अन्य संतों ने संस्थागत धर्म को त्यागकर उसके मानवीय पक्ष को उभारा। संस्थागत धर्म में संकीर्णता, कट्टरता, रूढ़िवादिता का समावेश होने के कारण अन्ततः वह साम्प्रदायिक चेतना व साम्प्रदायिकता को बढ़ावा देता है, जबकि धर्म का मानवीय पहलू मनुष्य को संकीर्णताओं से बाहर निकालता है। आचार्य हजारी प्रसाद द्विवेदी ने रविदास के मानवीय धर्म पर उचित ही टिप्पणी की है कि "अन्य संतों की तुलना में महात्मा रविदास ने अधिक स्पष्ट और जोरदार भाषा में कहा है कि 'कर्म ही धर्म है'। उनकी वाणियों से स्पष्ट होता है कि भगवद्भजन, सदाचारमय जीवन, निरंहकार वृत्ति और सबकी भलाई के लिए किया जाने वाला कर्म, ये ही वास्तविक धर्म है।" संत रविदास के राम दूसरे धर्म- सम्प्रदाय के लोगों को डराने-धमकाने के काम नहीं आते, उनका राम मनुष्य में विश्वास जगाता है। उन्होंने सामाजिक विषमताओं को उद्घाटित करने के लिए इसका सहारा लिया। "सामाजिक विषमताओं का विरोध निर्गुण भक्ति धारा में ही हुआ है जैसा कि धन्ना जाट, कबीर, रविदास, दादू आदि की रचनाओं से स्पष्ट ज्ञात होता है. ये सभी निम्न जाति के थे यद्यपि इन्होंने अपने प्रतीक सगुण भक्तिधारा से ही लिए थे परन्तु उनको एक नया अर्थ प्रदान किया था । यह अर्थ उनके सामाजिक थे परिवेश से सार्थक संबंध रखता था । प्रतीकों के साम्य से ही आंदोलनों की एकरूपता, उनके उद्देश्यों की एकमूलता नहीं सिद्ध हो जाती । विभिन्न परिस्थितियों में एक ही प्रतीक के भिन्न-भिन्न अर्थ हो सकते हैं। आज के राजनीतिक परिप्रेक्ष्य में 'राम-भक्ति'की दुहाई देकर जिस प्रकार की एकरूपता और सामाजिक- सांस्कृतिक समाकलन करने का प्रयत्न किया जा रहा है उसके विचार तत्त्व एवं उद्देश्य का प्राचीन एवं मध्ययुगीन भक्ति परम्पराओं से कोई साम्य नहीं है राजनीतिक उद्देश्यों से चला गया यह आंदोलन भक्ति की समन्वयवादी प्रवृत्ति के स्थान पर असहिष्णु अलगाववाद को ही प्रश्रय दे रहा है। संत रविदास व उनकी परम्परा के संतों-भक्तों ने समाज में साम्प्रदायिक विचारधारा के आधार धार्मिक तत्त्ववाद पर प्रहार करके एकता के तत्त्वों को 42 / दलित मुक्ति की विरासत : संत रविदास