पृष्ठ:दलित मुक्ति की विरासत संत रविदास.pdf/५३

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बल्कि वह तो एक भावना है जिसका संबंध मनुष्य के दिल से है। यदि वह अपने दिल की मैल साफ कर लेता है और मानव से प्रेम करने में उसे लगाता है तभी वह ऐसा कर सकता है। ईश्वर कोई वस्तु नहीं है जिसे कि मनुष्य को प्राप्त करना है। मानवों के प्रति अपने प्रेममय आचरण से उस अहसास को पा सकता है। ब्राह्मणवाद‘शुचिता’ ‘पवित्रता' का ढोंग रचता है, यहीं से ब्राह्मणवाद अस्पृश्यता को वैधता प्रदान करता है। रविदास ने उसकी पोल खोलते हुए सवाल उठाया। पूजा में जिस दूध का प्रयोग करते हैं, वह पहले ही बछड़े ने झूठा कर दिया है। फूल को भंवरे ने और पानी को मछली ने झूठा कर दिया है। 'शुद्धता', 'शुचिता' के आधार पर श्रेष्ठ होने का दम भरना व इसके आधार पर समाज के कमजोर वर्गों से नफरत करने की प्रवृत्ति को रविदास ने आड़े हाथों लिया है। दूधु त बछरै थनहु बिटारिओ । फूलु भवरि जलु मीनि बिगारिओ ॥ माई गोबिन्द पूजा कहा लै चरावउ । अवरु न फूलु अनूपु न पावउ ।। मैलागर बेर्डे है बुइअंगा। बिखु अमृतु बसहि इक संगा ॥ धुप दीप नईबेदहि बासा । कसे पूज करहि तेरी दासा ॥ तनु मनु अरपउ पूज चरावउ । गुर परसादि निरंजनु पावउ । पूजा अरचा न तोरी । कहि रविदास कवन गति मोरी ॥

माथे तिलक हाथ जप माला, जग ठगने कूं स्वांग बनाया । मारग छांड़ि कुमारग डहकै, सांची प्रीत बिनु राम न पाया ॥

भाई रे भरम-भगति सुजान, जौ लौं सांच सूं नहिं पहिचान ॥ भरम नाचन, भरम गायन, भरम जप, तप, दान । भरम नाचन, भरम गावन, भरम सूं पहचान ॥ भरम षट-कर्म सकल संहितां, भरम गृह, बन जान । भरम कर कर कर्म कीये, भरम की यह बान । भरम इन्द्री निग्रह कीयां, भरम गुफा में बास 56 / दलित मुक्ति की विरासत : संत रविदास