पृष्ठ:दलित मुक्ति की विरासत संत रविदास.pdf/६५

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कार्यों व योग्यता पर जोर दिया। उसके ज्ञान पर महत्त्व दिया, न कि उसके वर्ण या जाति पर । तत्कालीन समाज में पुरोहित का पद केवल विशेष वर्ण का व्यक्ति ही हासिल कर सकता था, लेकिन संतों का गुरु किसी के वर्ण से हो सकता था। किसी भी वर्ण से गुरु बनने का रास्ता खोलकर संतों ने निम्न वर्ग को प्रतिष्ठा प्रदान की। कल्पना कर सकते हैं कि निम्न जाति के व्यक्ति को गुरु तो किसने बनाना था, उनका कोई गुरु भी नहीं बनता था। उनको ज्ञान देने से भी सब बचते हैं। कबीरदास ने अपना गुरु 'जबरदस्ती' बनाया था। 'किवंदंती है कि जब कबीर भजन गा गा कर उपदेश देने लगे तब उन्हें पता चला कि बिना किसी गुरु से दीक्षा लिये हमारे उपदेश मान्य नहीं होगे, क्योंकि लोग उन्हें 'निगुरा' कहकर चिढ़ाते रहे। लोगों का कहना था कि जिसने किसी गुरु से उपदेश नहीं ग्रहण किया, वह औरों को क्या उपदेश देगा। अतएव कबीर को किसी को गुरु बनाने की चिन्ता हुई। कहते हैं, उस समय स्वामी रामानंद की काशी में सबसे प्रसिद्ध महात्मा थे। अतएव कबीर उन्हीं की सेवा में पहुंचे। परंतु उन्होंने कबीर के मुसलमान होने के कारण उनको अपना शिष्य बनाना स्वीकार नहीं किया। इस पर कबीर ने एक चाल चली जो अपना काम कर गई। रामानंद जी पंचगंगा घाट पर नित्य प्रति प्रातः काल ब्रह्म मुहुर्त में स्नान करने जाया करते थे उस घाट की सीढ़ियों पर कबीर पहले से ही जाकर लेट रहे । स्वामी जी जब स्नान करके लौटे तो उन्होंने अंधेरे में इन्हें न देखा, उनका पांव इनके सिर पर पड़ गया जिस पर स्वामी जी के मुंह से 'राम राम' निकल पड़ा । कबीर ने चट उठ कर उनके पैर पकड़ लिये और कहा कि आप राम राम का मंत्र देकर आज मेरे गुरु हुए हैं। रामानंद जी से कोई उत्तर देते न बना। तभी से कबीर ने अपने को रामानंद का शिष्य प्रसिद्ध कर दिया। स्वामी रामानंद कबीर के गुरु थे या नहीं इस पर विवाद है । लेकिन इस किवंदंती से इसका अनुमान हो जाता है कि निम्न जातियों के लिए गुरु बनाना कितना मुश्किल था और आधिकारिक ज्ञान-मीमांसा से उनको बहिष्कृत रखने का यह एक नायाब तरीका था । कबीर के गुरु धारण करने के बारे में इस किवंदंती से बारे में इस किवंदती से बात का अनुमान लगाया जा सकता है कि कबीर की रामानंद के विचारों में कोई विशेष आस्था या विश्वास नहीं था, न ही उन्होंने उन से 'ज्ञान' प्राप्त किया, रामानंद के सम्प्रदाय के तत्त्ववाद को उन्होंने ग्रहण नहीं किया। उन्होने एक तात्कालिक जरूरत के तरह रामानंद को अपन गुरु बनाया था। गुरु बनाना इनके लिए कितना पीड़ादायक रहा होगा कबीर की गुरु बनाने की प्रक्रिया से समझा जा सकता है। निम्न जाति के इन संतों को कोई 'पहुंचा हुआ' 'ख्याति प्राप्त' गुरु नहीं ही मिलता होगा और इसका रास्ता यही इन्होंने निकाला कि इन्होंने कथित परंपरागत उच्च- 68 / दलित मुक्ति की विरासत : संत रविदास