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शास्त्रों व अन्य 'धर्मग्रन्थों' में लिखी बात उनके लिए तर्क्य नहीं, बल्कि बिना किसी किन्तु-परन्तु के स्वीकार्य व अनुपालनीय थी। इसे ईश्वर का मानव के लिए संदेश कहकर नैतिक बोध में शामिल करते थे।

संतों ने शास्त्र प्रदत्त सामाजिक श्रेष्ठठा को चुनौती दी। अंध-आस्था को छोड़कर अनुभव को अपने तर्क का आधार बनाया। लोक-प्रचलित तथा शास्त्र- लिखित सुक्तियों-उक्तियों, विचारों को तर्क के बिना मानने से इनकार कर दिया। इनके लिए सत्य की कसौटी शास्त्र-लिखित वाक्य नहीं, बल्कि मानव- अनुभूत तर्क था। मानव हित का तर्क इनके जीवन-बोध में गहरे तक समाया था। मानव की महत्ता स्थापित करने का तर्क ही सबसे तेज औज़ार बना। संतों ने शास्त्र-सम्मत ऊंच-नीच व भेदभाव को इसी तर्क से काट दिया था।

भारतीय दर्शन व ज्ञान-मीमांसा में भौतिकवादी व अध्यात्मवादी धाराएं समानान्तर रूप से चलती रही हैं 'शासक वर्गों को हमेशा ही अध्यात्मिक धारा रास आती रही है। क्योंकि यह धारा शासकों के शोषण पर पर्दा डालती रही है उसकी दमनमूलक प्रतिमानों व आभिजात्य संस्कृति को समाज में स्वीकार्यता दिलाती रही है। शासक वर्गों ने आम नागरिकों को सदा निर्णायक मसलों से दूर रखा है दर्शन की इस धारा में इंसान की महत्ता को कमतर करके देखा गया। परमात्मा की पूजा-सेवा-भजन करने को मनुष्य का सर्वाधिक परम कार्य माना। भक्तिकालीन कवियों ने मानव को सृजक की पहचान दी। इन्होंने मानव-सेवा को ही ईश्वर-सेवा और मानव-प्रेम को ही ईश्वर-प्रेम कहा।

धर्म की मानवीय शिक्षाओं पर जोर दिया और उसके कर्मकाण्डी आडम्बरों को नकारा। धर्म का बाहरी रूप शासकों के हित में था। धर्म के इस रूप की कठिन उपासना-पद्धतियों की क्रियाओं को संपन्न करना अधिकांश आबादी से बाहर था। अधिकांश आबादी की इस तक पहुंच के लिए 'सहजता' को अपनाने पर बल दिया गया।

संत रविदास की साधना-पद्धति व उनके आध्यात्मिक चिंतन से इतर सामाजिक चिंतन वर्तमान में दलित साहित्य, चिंतन व आंदोलन को दिशा देने में अहम भूमिका निभा सकता है। इस पुस्तक में इसी को समझने का प्रयास किया गया है। आशा है कि यह प्रयास पसन्द किया जाएगा।

मैं प्रख्यात चिंतक आदरणीय डॉ. सेवा सिंह व डॉ. शिवकुमार मिश्र जी का धन्यवाद करता हूं, जिन्होंने इस पुस्तक की पाण्डुलिपि को पढ़कर उत्साह प्रदान किया और प्रकाशन के लिए प्रेरित किया। बेटी किरती, बेटे असीम व जीवनसंगिनी विपुला के धन्यवाद के लिए शब्द नहीं सूझ रहे ।

डॉ. सुभाष चन्द्र

10/ दलित मुक्ति की विरासत : संत रविदास