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संत रविदास : जीवन परिचय

 

मध्यकालीन संतों ने अपने बारे में बहुत कम लिखा है। प्रामाणिक जानकारियों के अभाव में संतों और भक्तों के जन्म-मृत्यु व पारिवारिक जीवन के बारे में आमतौर पर मत विभिन्नताएं हैं। "किसी महापुरुष के जीवन-वृत्त के संबंध में खोज करने के लिए हमारे पास दो ही प्रमुख साधन हैं। प्रथमत:- अन्तः साक्ष्य और द्वितीय बाह्य साक्ष्य। अंतः साक्ष्य के अन्तर्गत वह समस्त सामग्री आती है जिसमें उस महापुरुष, लेखक अथवा कवि ने स्वयं अपने संबंध में परोक्ष अथवा अपरोक्ष रूप में बताया हो। बाह्य साक्ष्य के अन्तर्गत उसके संबंध में उसके सम-सामयिक तथा परवर्ती विद्वानों द्वारा लिखी गई सामग्री आती है। प्रचलित कथाएं व किंवदंतियां आदि की भी गणना बाह्य साक्ष्य में होती है। बाह्य साक्ष्य की अपेक्षा अंतः साक्ष्य अधिक महत्वपूर्ण होता है। बाह्य साक्ष्य में समकालीन विद्वानों का कथन अधिक प्रामाणिक और महत्त्वपूर्ण माना जाता है। संत रविदास के संबंध में हमें अधिकतर बाह्य-साक्षियां ही मिलती हैं। अंतः साक्ष्य सामग्री से केवल नाम, जाति, गार्हिस्थ्य जीवन और विचारधारा आदि कुछ तथ्यों पर ही प्रकाश पड़ता है।"

संत रविदास की कृतियों में उनके अनेक नाम देखने को मिलते हैं। उच्चारण की दृष्टि से थोड़े-बहुत अन्तर से देश के विभिन्न भागों में रैदास, रोहीदास, रायदास, रुईदास आदि अनेक नाम प्रचलित हैं। 'गुरु ग्रंथ साहिब' में संत रविदास के कुछ पद संकलित हैं, जिनमें उनके रैदास नाम का उल्लेख है। लोक-प्रचलन और सुविधा की दृष्टि से उनका मूल नाम रैदास ही स्वीकार किया जाता है। काव्य-ग्रन्थों में रैदास का तत्सम रूप रविदास प्रयुक्त हुआ है। अन्य नाम देश और काल के भेद से उन्हीं के परिवर्तित और विकसित रूप माने जा सकते हैं।

संत रविदास के नाम के बारे में ही नहीं, बल्कि जन्म के बारे में भी कई अटकलें लगाई जाती हैं। "रविदासी सम्प्रदाय में निम्नलिखित दोहा शताब्दियों से प्रचलित है:

संत रविदास जीवन परिचय/11