पृष्ठ:दलित मुक्ति की विरासत संत रविदास.pdf/७५

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पराधीन कौ दीन क्या, पराधीन बेदीन । 'रविदास' दास प्राधीन कौ, सबही समझे हीन ॥ रविदास ने स्वाधीनता को सुखी जीवन का आधार माना है। तत्कालीन सामन्ती समाज में रविदास ने स्वाधीनता की धारणा मानवीय गरिमा के लिए जरूरी मानकर महत्त्वपूर्ण सत्य को अभिव्यक्त किया था। समाज में जितने भी सकारात्मक बदलाव हुए हैं, उनके पीछे स्वतन्त्रता की भावना का मुख्य योगदान है। समाज में जितनी भी क्रांतियां हुई हैं उनके पीछे भी यही विचार काम करता रहा है। विशेष तौर पर जिन समाजों ने सामाजिक पराधीनता को झेला है वे इसके दंश को बेहतर ढंग से जानते हैं। संत रविदास ने मानव की मूलभूत आकांक्षा को वाणी देकर उसकी चाह को बढ़ावा दिया है और आजादी प्राप्त करने की ओर प्रेरित किया है। संदर्भ 1. सावित्री शोभा; हिन्दी भक्ति साहित्य में सामाजिक मूल्य एवं सहिष्णुतावाद; पृ. - 11 78 / दलित मुक्ति की विरासत संत रविदास