पृष्ठ:दलित मुक्ति की विरासत संत रविदास.pdf/७७

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का प्रभाव शिक्षित जनता पर नहीं पड़ा, क्योंकि इसके लिए न तो इस पंथ में कोई बात थी, न नया आकर्षण । संस्कृत बुद्धि, संस्कृत हृदय और संस्कृत वाणी का वह विकास इस शाखा में नहीं पाया जाता, जो शिक्षित समाज को अपनी ओर आकर्षित करता।' दलित चिंतक कंवल भारती ने आचार्य जी के मंतव्य पर सही टिप्पणी की है कि 'आचार्य शुक्ल सरीखे आलोचक यह नहीं जानते कि इन्हीं दलित संतों के पद गुरु ग्रंथ साहब में संकलित हैं, जो काव्य के अनेक अंगों और रागों में बद्ध हैं और उनकी संगीतात्मकता इतनी सरस है कि कुमार गंधर्व जैसे संगीतकारों ने उन्हें न केवल अपने गायन का अंग बनाया, वरन् उनके आधार पर कितनी ही मधुर संगीत रचनाओं का सृजन भी किया। संत कबीर और रैदास आदि के पदों की यह रसात्मक भावधारा ही है, जो संगीतकारों को आकर्षित करती है और श्रोताओं को अलौकिक आनंद से सराबोर करती है। क्या उनके पदों की यह अंग रागबद्धता निर्धारित काव्यशास्त्र के सिद्धांतों के बिना संभव हो सकती है।" मध्यकालीन संत न तो किसी राजा के दरबार की शोभा थे और न स्वयं ही सामन्ती जीवन से ताल्लुक रखते थे। वे शास्त्रीय परम्परा के संवाहक भी नहीं थे, इसके विपरीत वे मेहनतकश वर्गों से जुड़े थे और लोक- अनुभव उनकी पूंजी थी । वे अपनी कविता के लिए लोक से ही सामग्री ग्रहण करते थे। संत कवियों ने अपने जीवन के अनुभवों व सामूहिक चेतना को अपनी रचनाओं का आधार बनाया, इसीलिए उनकी रचनाओं में न तो पौराणिक आख्यानों के पात्रों का आदर्शीकरण है और न ही वे प्रतीकों-बिम्बों के रूप में मौजूद हैं। संतों ने लोक जीवन के बिम्बों- प्रतीकों व भाषा के माध्यम से अपनी अभिव्यक्ति की, जिसका अभिजात्य सौन्दर्यशास्त्र में कोई स्थान नहीं था । अपने काम के औजारों को कविता के औजार बनाने से जो उपमाओं की विश्वसनीयता बनी है वह अनुपम है। कवि ने अपनी बात कहने के लिए उधार के शब्द और प्रतीक नहीं लिए और न ही मात्र कल्पना का सहारा लिया, बल्कि अपने जीवन की वस्तुओं को ही कविता में प्रयोग किया है। 'रविदास' हौं निज हत्थहिं, राखौं रांबी आर । सुकिरित ही मम धरम है, तारैगा भव पार || संत रविदास के काम करने के औजार 'रांबी', 'आर', 'बिगुचा' शायद ही इससे पहले कविता में प्रयोग हुए हों। संत रविदास ने कविता में प्रवेश किया तो उससे उनका पूरा संसार ही कविता में आ गया। कविता का एक ऐसी दुनिया से परिचय हुआ जिससे वह अभी तक अछूती थी । 80 / दलित मुक्ति की विरासत संत रविदास