पृष्ठ:दलित मुक्ति की विरासत संत रविदास.pdf/८१

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जाती है। और व्यापार चुंगी कर या अन्य किस्म का टैक्स लगने का ऐतिहासिक तथ्य भी सामने रखते हैं। अपने समय की सच्चाइयां उनके काव्य में जहां तहां बिखरी पड़ी हैं। जिन को जोड़कर उस समय की तस्वीर बनाई जा सकती है। संत रविदास ने उलटबांसियों का प्रयोग करके अपनी अभिव्यक्ति को प्रभावशाली बनाया है, यद्यपि इनका अधिक प्रयोग नहीं किया गया। लेकिन जिस समाज में सीधी बात को कोई नहीं सुनता, उस समाज में इस तरह की शैली बहुत कारगर होती है। वाणी में वक्रता व चमत्कार पैदा करके पाठक-श्रोता का अपनी ओर ध्यान खींचना तथा अपने काव्य से उसे जोड़ने का यह ढंग कबीर व संत रविदास ने निकाला था। उनकी वाणी में विपरीतों के माध्यम से बात कही है, पाठक को स्वयं उसे सीधा करना पड़ता है। संत कवियों ने अपनी अभिव्यक्ति को कारगर व प्रभावी बनाने के लिए काव्य-शैलियों को ईजाद किया। उन्होंने कविता मात्र कविताई के लिए नहीं की थी और न ही उनका कवि के तौर पर अपने आप को स्थापित करने का मकसद था। वह समाज को जगाने के लिए निकले थे। इसी मकसद को पूरा करने वाली शैली को अपना कर ही वे अपने मकसद में कामयाब हो सकते थे। इसीलिए कबीर व संत रविदास का काव्य पूरी तरह से संबोधनात्मक है । वे किसी को संबोधन करना चाहते हैं, जैसे कि उनके सामने कुछ श्रोता हैं और वे उनको समझा रहे हैं। बार-बार उनके काव्य में 'साधो', 'भाई रे' जैसे संबोधन मिलते हैं। यह संवाद ही उनकी कविता को जीवन्त बना देता है। उसमें एक श्रोता विद्यमान है उनकी कविता मात्र एक कवि का या भक्त का प्रलाप बनकर नहीं रहती। जब कविता किसी खास मकसद के लिए किसी खास श्रोता वर्ग के लिए कही जाती है तो उस पर पाठक की चेतना का, उसकी समझ के स्तर का अतिरिक्त दबाव हावी हो जाता है। अपने श्रोताओं से इस तरह का संबंध रखने वाला कवि विशेष हैसियत रखने के बावजूद भी पूर्णतः स्वतंत्र नहीं होता । इसीलिए संत रविदास और कबीर आदि संतों की कविताओं में ऐसी लोकचेतना के उदाहरण भरे पड़े हैं। जनता की चेतना का ख्याल रखते हुए की गई इस कविता में काफी कुछ मान्यताएं व धारणाएं भी ऐसी होंगी, जो सिर्फ जन रुचि के कारण ही कविता में आई होंगी। । संत रविदास की कविता में कबीर की तरह से अपने विरोधी पक्ष की खिल्ली नहीं उड़ाई, बल्कि एक विरोधी पक्ष को समझकर उसका प्रतिपक्ष तैयार किया है। संत रविदास ने अपने समय के पण्डों-मुल्लाओं को उस तरह से संबोधित नहीं किया, जिस तरह से कबीर ने उन्हें चुनौती दी थी । इसीलिए कबीर जब पण्डों-मुल्लाओं को संबोधित करते हैं तो वे अपने दोस्तों को संबोधित करते 84 / दलित मुक्ति की विरासत संत रविदास