पृष्ठ:दलित मुक्ति की विरासत संत रविदास.pdf/८६

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जो दिन आबहि सो दिन जाही करना कुचु रहनु थिरु नाही ॥ संगु चलत है हम भी चलना । दूरि गवनु सिर ऊपरि मरना ॥ ॥ ॥ किया तू सोइआ जागु इआना । तै जीवनु जगि सचु करि जाना ॥ ॥ ॥ रहाउ । जिनि जीउ दीआ सुरिजकु अंबरावै । सब घट भीतरि हाटु चलावै ॥ करि बंदिगी छाड़ि मैं मेरा । हिरदै नामु सम्हारि सवेरा ॥ 2 ॥ जनमु सिरानो पंथु न सवारा । सांझ परी दहदिस अन्धिआरा ॥ कह रविदास निदानि दिवाने । चेतसि नाही दुनीआ फनखाने ॥ 3 ॥ संगु - माथी । गवनु – गमन, जाना । सिर ऊपरि - निश्चित । इआना- - अनजान, नादान। रिजकु – रोज़ी, आजीविका । अंबरावै - जुटाता है। हाटु चलावै- - लेन-देन करता है। सम्हारि - स्मरण कर । सबेरा - शीघ्र । सिरानो - बीत गया, - नष्ट हो गया। दहदिस — दस दिशाओं में । निदानि – नादान | फनखाने-नाशवात । - - हम सरि दीनु दइआलु न तुम सरि अब पतिआरु किया कीजै । बचनी तोर मोर मनु मानै जन कउ पूरनु दीजै ॥ 1 ॥ हउ बलि बलि जाउ रमईआ कारने कारन कवन अबोल ॥ रहाउ ॥ संत रविदास वाणी / 89