पृष्ठ:दलित मुक्ति की विरासत संत रविदास.pdf/८८

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।

मेरी संगति पोच सोच दिनु राती । मेरा करमु कुटिलता जनमु कुभांती ॥ 1 ॥ राम गुसईआ जीअ के जीवना। मोहि न बिसारहु मैं जनु तेरा ॥ 1 ॥ रहाउ ॥ मेरी हरहु बिपति जन करहु सुभाई । चरण न छाडउ सरीर कल जाई ॥ 2 ॥ कहु रविदास परउ तेरी साभा । बेगि मिलहु जन करि न बिलांवा ॥ 3 ॥ पोच – अधन, तुच्छ, बुरी । करमु – कर्म । कुटिलता - बुराई । कुभांती- - नीच जाति में। गुसईआ— गुसाईं, स्वामी । न बिसारहु – न भुलाइएगा। सुभाई- स्वभाव । साभा- शरण | बिलांबा - विलम्ब, देर । - घट अवघट डूगर घणा इकु निरगुण बैलु हमार । रमईए सिउ इक बेनती मेरी पूंजी राखु मुरारि ॥ 1 ॥ को बनजारो राम को मेरा टांडा लादिआ जाइ रे ॥ 1 ॥ रहाउ | हउ बनजारो राम को सहज करउ ब्यापारु । मैं राम नाम धन लादिया बिखु लादी संसारि ॥ 2 ॥ उर वारपार के दानीआ लिखि लेहु आल पतालु। मोहि जम डंडु न लागई तजीले सरब जंजाल ॥ 3 ॥ जैसा रंगु कसुंभ का तैसा इहु संसारु । मेरे रमईए रंगु मजीठे का कहु रविदास चमार ॥ 4 ॥ — घट-घड़ा, शरीर । अवघट- कठिन । डूगर - टीला | बनजारो - व्यापारी । टांडा - खेप | बिखु – विषय, भोग-विलास | वारपार - इस छोर से छत छोर - तक । दानीया – महसूल उगाहने वाला। आलू पतालु – झूठ मठ | कसुंभ- केसर । रकईए- [-राम । मजीठ- एक विशेष प्रकार की जड़ जिसे उबाल कर रंग बनता है । — संत रविदास वाणी / 91