पृष्ठ:दलित मुक्ति की विरासत संत रविदास.pdf/९१

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तुम्हरे भजन बिनु भ्रमत फिरौं । ममता अहं विषै मद मातौ यह सुख कबहूं न दुतर तिरौं ॥ 1 ॥ तुम्हारे नांव बिसास छाड़ी है आन की आस, संसार धरम मेरो मन न धीजै । रैदास दास की सेवा मानि हो दैव विधि देव, पतित पावन नाम प्रगट कीजै ॥ 2 ॥ अगम त्रास – दारुण, विकट भय | अहं - अहंकार | विषै- विषय-वासना । दुतर – दुस्तर, जिसे पार करना कठिन हो । तिरौं - तर जाऊं, पार कर जाऊं । न धीजै – धारण नहीं करता है। पतित पावन - पापियों को पवित्र करने वाला । - जौ तुम तोरो राम मैं नहिं तोरौँ । तुम से तोरि कवन से जोरौँ ॥ टेक ॥ तीरथ बरत न करौं अंदेसा । तुम्हरे चरण कमल कभरोसा ॥ 1 ॥ जहं जहं जाओं तुम्हरी पूजा । तुम सा देव और नहिं दूजा ॥ 2 ॥ मैं अपनो मन हरि से जोर्यो । हरि से जोरि सबन से तोर्यो ॥ 3 ॥ सबही पहर तुम्हारी आसा मन बच क्रम कहै रैदासा ॥ 4 ॥ तौरि - तोड़कर | कवन से- किस से। जोरौं - जोडूं । अंदेसा - आशंका, - द्विविधा | मन बच क्रम- मन, वाणी और कर्म से। 94 / दलित मुक्ति की विरासत: संत रविदास