पृष्ठ:दलित मुक्ति की विरासत संत रविदास.pdf/९५

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बिन रसना निसदिन गुन गाऊं ॥ 4 ॥ कह रैदास राम भजु भाई । संत साखि दे बहुरि न आऊं ॥ 5 ॥ चटसाल - पाठशाला । साटि - छड़ी। अच्छर-अक्षर सहज समाधि- तत्वानुभूति को। पाटी - तख्ती । सुरति - तत्वानुभूति की स्मृति । ररौ ममौ-रकार - और मकार - इन दो अक्षरों से 'राम' बनता है। आंक- अंक । कागद कंवल - - हृदय-कमल रूपी कागज़ | मति-मसि - बुद्धि रूपी स्याही । साखि – साक्षी। बहुरि - फिर, दूसरी बार - - गोबिंदे भवजल ब्याधि अपारा । ता में सूझे वार न पारा ॥ टेक ॥ अगम घर दूर उर तट, बोलि भरोस न देहू। तेरी भगति अरोहन संत अरोहन, मोहि चढ़ाड़ न लेहू ॥ 1 ॥ लोह की नाव पखान बोझी, सुकिरित भाव बिहीना । लोभ तरंग मोह भयो काला, मीन भयो मन लीना ॥ 2 ॥ दीनानाथ सुनहु मम बिनती, कवने हेत बिलंब करीजै । रैदास दास संत चरनन, मोहिं अब अवलंबन दीजै ॥ 3 ॥ भवजल - भवसागर, संसार । ब्याधि - रोग। अगम घर - अगम्य परमात्मा - - का निवास स्थान | उर तट - दूसरे तट पर । अरोहन - आरोहण, चढ़ना, सीढ़ी। पखान-पाषाण, पत्थर बोझी - बोझिल, भारी । सुकिरित- सुकृत, पुण्य । मीन भयो – मछली के समान चंचल । बिलंब – देर । अवलंबन - आश्रय, सहारा । तेरे देव कमलापति सरन आया। मुझ जनम संदेह भ्रम छेदि माया ॥ टेक ॥ 98 / दलित मुक्ति की विरासत : संत रविदास