पृष्ठ:दलित मुक्ति की विरासत संत रविदास.pdf/९७

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।

जब राम नाम कहि गावैगा । तब भेद अभेद समावैगा ॥ टेक ॥ जो सुख है इहि रस के परसे । सो सुख का कहि गावैगा ॥ 1 ॥ गुरु परसाद भई अनुभौ मति । विष अमृत सम धावैगा ॥ 2 ॥ कह रैदास मेटि आपा पर । तब वा ठौरहि पावैगा ॥3॥ भेद - अपने पराये का भेद, द्वैतभाव । अभेद - अद्वैत भाव | भेद अभेद - समावैगा— द्वैतभाव अद्वैतभाव । इहि रस-तत्वानुभूति का आनंद । परसे- स्पर्श करने पर। अनुभौ — अनुभव, तत्वानुभूति । आपा पर - अपने पराये का भाव। - जे ओहु अठि सठि तीरथ न्हावै । जे ओहु दुआदस सिला पूजावै ॥ जे ओहु कूप तटा देवावै । करै निंद सभ बिरथा जावै ॥ 1 ॥ साध का निंदकु कैसे तरै । सरपर जानहु नरक ही परै ॥ 1 ॥रहाउ ॥ जे ओहु ग्रहन करै कुलखेति । अरपै नारी सीगार समेति ॥ सगली सिंमृति स्रवनी सुनै । करे निंद कवने नहीं गुनै ॥ 2 ॥ जे ओहु अनिक प्रसाद करावै । भूमिदान सोभा मंडपि पावै ॥ अपना बिगारि बिरांना सांढै । 100 / दलित मुक्ति की विरासत संत रविदास