पृष्ठ:दलित मुक्ति की विरासत संत रविदास.pdf/९९

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जल की भीति पवन का थंभा रकत बूंद का गारा। हाड़ मांस नाड़ी को पिंजरु पंखी बसै बिचारा ॥ 1 ॥ प्रानी किआ मेरा किआ तेरा । जैसे तरवर पंखि बसेरा ॥ 1 ॥ रहाउ ॥ राखहु कंध उसारहु नीवां । साढ़े तीनि हाथ तेरी सीवां ॥ 2 ॥ बंके बाल पाग सिर डेरी । इहु तनु होइगो भसम की ढेरी ॥ 3 ॥ ऊंचे मंदर सुंदर नारी । राम नाम बिनु बाजी हारी ॥ 4 ॥ मेरी जाति कमीनी पांति कमीनी ओच्छा जनमु हमारा । तुम सरनागति राजा राम चंद कहि रविदास चमारा ॥5॥ भीति – दीवार । थंभा - स्तंभ, खंभा । पिंजरु- शरीर । पंखी - पक्षी । कंध- दीवार । उसारहु — उठाते हो | नीवां- नींव । सीवां - सीमा । बंके - बांके । डेरी- टेढ़ी । पांति - कुल । - मृग मीन भृंग पतंग कुंचर एक दोख बिनास | पंच दोख असाध जा महि ता की केतक आस ॥ 1 ॥ माधो अबिदिआ हित कीन । बिबेक दीप मलीन ॥ 1 ॥ रहाउ ॥ तृगद जोनि अचेत संभव पुन पाप असोच । मानुखा अवतार दुलभ तिही संगति पोच ॥2॥ जीअ जंत जहा जहा लगु करम के बसि जाइ | काल फास अबध लागे कछु न चलै उपाइ ॥ 3 ॥ 102 / दलित मुक्ति की विरासत संत रविदास