पृष्ठ:दासबोध.pdf/१०३

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२२ दासबोध। [ दशक २ करता हो और सात* व्यसनों में जिसका मन लगा रहता हो वह एक मूर्ख है ॥ १६ ॥ जो दूसरे की आशा से निश्चिन्त होकर प्रयत्न छोड़ देता है और आलसही में संतोष मानता है वह एक मूर्ख है ॥ १७ ॥ घर में तो विचार किया करता है; परन्तु सभा में लज्जित होता है, अर्थात् वहां जिसे एक शब्द बोलने में भी घबड़ाहट आती है वह मूर्ख है ॥१८॥ अपने से जो श्रेष्ठ हैं उनके साथ जो अति निकटताका सम्बन्धरखता और उपदेश करने पर बुरा मानता है वह मूर्ख है ॥ १६ ॥ जो अपनी नहीं सुनता उसे सिखाता है, बड़ों से अपना ज्ञान प्रगट करता है और जो आर्य, अर्थात् श्रेष्ट पुरुपों को धोखा देता है वह मूर्ख है ॥ २० ॥ जो विष- योपभोग करने में निर्लज्ज बन गया हो और मर्यादा छोड़ निरंकुश होकर बर्ताव करता हो वह एक मूर्ख है ॥ २१ ॥ व्यथा होने पर जो ओषधि नहीं लेता, जो कदापि पथ्य से नहीं चलता और अनायास प्राप्त हुए पदार्थ का जो स्वीकार नहीं करता वह एक मूर्ख है ॥ २२ ॥ जो बिना साथी के विदेश करता हो, बिना पहचान के साथ करता हो और जो नदी की. बाढ़ में कूदता हो वह एक मूर्ख है ॥ २३ ॥ जहां अपना मान हो वहां बार बार जाता हो और जो अपने मान और अभिमान की रक्षा न करता हो वह मूर्ख है ॥२४॥ जो अपने धनवान् सेवक के आश्रित होकर रहता हो और जो सदा मनमलीन रहता हो वह मूर्ख है ॥ २५ ॥ जो कारण का विचार न करके बिना अपराध दंड देता हो और जो थोड़े के लिए कृपणता करता हो वह मूर्ख है ॥ २६ ॥ जो देव और पितरों को न मानता हो, शक्ति बिना मुहँजोरी करता हो और जो व्यर्थ बड़बड़ करता रहता हो वह भी एक मूर्ख है ॥ २७ ॥ घरवालों पर दाँत पीसता हो और बाहर बिचारा दीन की तरह रहता हो-ऐसा जो मूढ़ और पागल है वह भी मूर्ख है ॥ २८ ॥ जो नीच जाति से संगति, और दूसरे की स्त्री से एकान्त मैं बातचीत करता हो और जो खाते खाते राह चलता हो वह एक मूर्ख है ॥ २६ ॥ जो परोपकार करना नहीं जानता। भलाई के बदले बुराई करता है और करता थोड़ा है, परन्तु बतलाता बहुत है वह एक मूर्ख है ॥ ३०॥ जो क्रोधी, अधिक खानेवाला और आलसी है, मलीन और मन में कुटिल है, धीरज जिसके पास न हो वह एक मूर्ख है ॥ ३१ ॥ जिसके पास विद्या, वैभव, धन, पुरुषार्थ, सामर्थ्य और मान आदि कुछ नहीं है-कोरा अभिमान ही दिखलाता है वह एक मूर्ख है

  • सप्तव्यसनः–जारण, मारण, विध्वंसन, वशीकरण, स्तंभन, मोहन और उच्चाटन ।