पृष्ठ:दासबोध.pdf/११८

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सगास ७] लतोगुण-निरूपण। ३७ सतोगुण के कारण ईश्वर में प्रेम अधिक रहता है, प्रपंच का सम्पा- बन नौकिक समझ पड़ता है और विवेक सदा पास रहता है ॥६॥ सतोगुण संसार-दुःख भुला देता है. विमल भक्तिमार्ग दिखा देता है और भजन-भाव उपजाता है ॥ १० ॥ उसके द्वारा पर- चार्य में प्रीति, भनिन में प्रेम और परोपकार में मन लगता है ॥ ११ ॥ सनोमगा से मनुप्य स्नान, सन्ध्या, आदि कर्म करके पुण्यशील वनता है और अन्तशुद्ध वनकर शरीर और वस्त्र आदि भी सुन्दर-उज्ज्वल मरना है ॥ १२ ॥ वह यज्ञ करता है और लोगों से कराता है; वेदशास्त्र, आदि पढ़ता है और पढ़ाता है तथा दान-पुण्य स्वयं करता और कराता है ॥ १३॥ सतोगुणी पुरुष का अध्यात्म-निरूप में मन लगता है, हरि- कया अच्छी लगती है और वह सदाचरण में प्रवृत्त होता है ॥ १४ ॥ सतोगुण से मनुष्य अश्वदान, गजदान, गोदान भूमिदान और नाना रत्नों का दान करता है ॥ १५॥ धनदान, वस्त्रदान, अन्नदान उदकदान और ब्राह्मरासंतर्पण करता हैं ॥ १६॥ कार्तिकस्नान, माघस्नान, व्रत, उद्यापन, दान, तीर्थ और उपवास, वह निष्काम-कामनारहित-होकर करता है ॥१७॥ महन्नभोजन, लक्षभोजन, अनेक प्रकार के दान जो निष्काम करता हो वह तो सत्वगुणी है और जो कामना से करता हो वह रजोगुणी है ॥ १८॥ तीयों में जो भूमिदान करता हो. बावड़ी और सरोवर (तालाब) बांधता हो; मन्दिर और शिखर बनाता हो वह सत्वगुणी है ॥ १६ ॥ जो देवस्थान में, रहने के लिए स्थान, सीढ़ियां, दीप-माला, तुलसी और पीपल श्रादि के लिये चबूतरा बनवाता हो वह सत्वगुणी है ।। २० ।। चन, उप- चन, पुप्पवाटिका, कुएं, तालाब आदि बनवावे और तपस्वियों के मन संतुष्ट करे वह सत्त्वगुणी है ॥ २६ ॥ जो संध्यामठ, मुँहेरे, नदी के तीर में सीढ़ियां और देवस्थानों में भांडारगृह स्थापित करे वह सत्वगुणी है ।।२२।। अनेक देव स्थानों में जो नंदादीप लगाता हो, अलंकार आभूपण रखता हो वह सत्वगुणी है ॥ २३ ॥ घड़ियाल, मृदंग, करताल, ताशे, नगाड़े, काहल (एक चर्मवाद्य) आदि सुस्वर बाद्य जो मन्दिरों में रखता हो वह सत्वगुणी है 1॥ २४ ॥ इसके सिवाय अनेक प्रकार की अन्य सुन्दर सामग्री जो मनुष्य मन्दिरों में रखता हो तथा जो स्वयं हरिभजन में तत्पर रहता हो वह सात्विकी है ॥२५॥ छत्र, सुख-श्रासन, तम्बूरा, पताका, निशान, चामर, सूर्यपान आदि वस्तुएं जो पुरुष देवालयों में दान करता हो वह सत्त्वगुणी है ॥ २६ ॥ जो वृन्दावन, तुलसीवन लगाने, रंगमाला बनाने वृन्दा-वृक्षविशेष ।