पृष्ठ:दासबोध.pdf/१४०

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स्वगुण-परीक्षा। देवता प्रसन्न होते हैं और सन्तान होती है ॥३१॥ अब उस दम्शे पर बड़ी भीति होती है। स्त्री पुरुष दोनों एक क्षण भी बच्चे को नहीं भूलते यदि हो जाता है तो दीर्घ स्वर से चिल्लाते हैं ॥३५॥ इस प्रकार वे दुखिया अनेक देवताओं की पूजा किया करते हैं कि, इतने ही में अकस्मात , पूर्व- के कारण वह बालक भी मर जाता है ! ॥ ३६ ॥ इलले बहुत दुख होता है-घर में पुत्रशोक छा जाता है । अव कहते हैं कि “ईश्वर ने हमें शंभ बना कर क्यों रखा ? ॥ ३७ ॥ हमें द्रव्य क्या करना है ? वह मा जाय; पर संतान हो! संतान के लिए सब छोड़ना पड़े, तोभी कुछ परवाह नहीं!" ॥ ३८ ॥ अभी वांझपन जाते देर नहीं हुई कि इतने ही में मरतबांस नाम पड़ गया। अब किल उपाय से यह नाम मिटे ? वे दुःखी होकर इस प्रकार रोते हैं:-॥ ३६॥ " हमारी वेलि क्यों कट गई ? हाय ई, क्षाय दई, वंश डूब गया ! अरे, कुलस्वामिनी क्यों नाराज हो गई ! कुलदीपक बुझ गया ! ॥ ४० ॥ अब अगर लड़के का मुंह देखेंगे तो आनन्द से दगदगाते हुए अंगारों की खाई पर चलेंगे और कुलस्वा- मिनी के पास जाकर अँकड़ी भी छेदेंगे। ४१॥ हे माता, तेरी पूजा करेंगे, लड़के का नाम 'कूड़ामल,' रखेंगे! नथनी पहनावेंगे, मेरा मनोर्थ पूर्ण करो!" ॥ ४२ ॥ बहुत से देवताओं के मानगन करते हैं, बहुत से गोसाई हूँढ़ते है और बहुत से विच्छू गट गट निगल जाते हैं। ॥ ४३ ॥ भूतों के उपाय करते हैं, बहुत ले देवता शरीर पर लाते हैं; केला, नारियल और आंच ब्राह्मणों को देते हैं ! ॥४४॥ नाना प्रकार के जारण, मारणादिक अघोर काम करते हैं, पुत्र पाने के लिए अनेक टंघट करते हैं-इतने पर भी देव- प्रतिकूलता के कारण पुत्र नहीं मिलता ! ॥ ४५ ॥ रजोदर्शन के चौथे दिन वृक्ष के नीचे जाकर स्त्री-पुरुप नहाते हैं, जिसले फले फूले वृक्ष सूख जाते हैं (1) पुत्रलोभ के कारण इसी प्रकार के अनेक दोष करते हैं ॥ ४६ ॥ सब सुख छोड़ कर अनेक उपाय करते करते जब वे घबड़ा जाते हैं तव कहीं वह कुलस्वामिनी देवी प्रसन्न होती है ! ॥ ४७ ॥ अब, उनका मनोरथ पुरा होगा-स्त्री पुरुष आनन्दित होंगे, इसकी कथा अगले समास में श्रोता तोग, सावधान होकर, सुने ॥ ४॥

  • जिसके सन्तान होती तो है; पर जीती नहीं उसे मरतबांझ कह सकते हैं। .