पृष्ठ:दासबोध.pdf/१४१

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'दासबोध । [ दशक ३ चौथा समास-स्वगुण-परीक्षा । ( गृहस्थी के संकटों के कारण परदेश जाना । ॥ श्रीराम ॥ ज्योंही बहुत से बच्चे पैदा होते हैं त्योंही धन चला जाता है-विचारे भीख मांगने योग्य हो जाते हैं कुछ खाने को नहीं मिलता ॥१॥ छोटे छोटे बच्चे खेलते हैं, कोई रेंगते हैं, कोई पेट में हैं इस प्रकार कन्या और पुत्रों की भीड़ घर में भर जाती है ॥२॥ दिन दिन खर्च बढ़ने लगता है, आमदनी बन्द हो जाती है, कन्याएं ब्याह के योग्य होती है; परन्तु उनको विवाहने के लिए द्रव्य नहीं है ! ॥३॥ मा-बाप धन-सम्पन्न थे, इसी कारण लोगों में उनकी प्रतिष्टा और मान था ॥४॥ अब लोगों में सिर्फ भरम (दिखाव) रह गया है, घर में पहले की सम्पत्ति नहीं है। दिन पर दिन, भीतर ही भीतर, दरिद्रता आती जाती है ॥५॥ इधर गृहस्थी बढ़ती है-लड़कों बच्चों की वृद्धि होती है अतएव अब वह प्राणी चिन्ता-अस्त होता है ॥ ६॥ कन्याएं ब्याहने योग्य होती हैं, पुत्रों का व्याह करने के लिए लोग आने लगते हैं-अब विवाह अवश्य करना चाहिए ! ॥ ७॥ यदि लड़के वैसे ही अनव्याहे रह जाते हैं तो लोगों में हँसी होती है और लोग कहते हैं कि इन जन्मदरिद्रियों को किस लिए पैदा किया ? ॥ ८॥ लोगों में हँसी तो होगी ही; किन्तु पुरुरखों का नाम भी डूबेगा ! अब विवाहों के खर्च के लिए ऋण कौन देगा? ॥ ६ ॥ पहले जिससे ऋण लिया था उसका तो लौटा कर दिया ही नहीं-इस तरह प्राणी चिन्तासागर में डूब जाता है! ॥ १० ॥ वह अन्न को खाता है और अन्न उसको खाता है तथा मन में सदा चिन्ता से अातुर रहता है ॥ ११ ॥ सारी पत ( इज्जत) जाती है, चीज वस्तु गहने पड़ती है ! हाय दई, अब दिवाले का समय आता है ! ॥ १२॥ कुछ तोडमोड़ करता है; कुछ घर के गोरू-बछेडू बेचता है और कुछ रोक पैसा व्याज पर लेता है ॥ १३ ॥ इस प्रकार ऋण लेकर लोगों में दम्भ रचता है, इस पर सब कहते हैं कि "भाई, इसने पुरुखों का नाम रख लिया!" ॥१९॥ इस प्रकार ऋण का बोझ बहुत बढ़ जाने के कारण साहूकार लोग आकर घेर लेते हैं; अतएव घबड़ा कर प्राणी परदेश चला जाता है ! ॥ १५ ॥ परदेश में दो वर्ष की बुड्डी लगा देता है, वहां नीच सेवा स्वीकार करता है और अनेक आपदाएं भोग़ता है ॥ १६ ॥ परदेश में कुछ धन कमाता है, पर