पृष्ठ:दासबोध.pdf/१४७

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दासबोध [ दशक ३ । नस्तु । सम्पूर्ण जीवन दुख का मूल ही है, यहां दुख के अंगार लगते है, इसी लिये मनुष्य शरीर पाकर अपना सच्चा हित कर लेना चाहिए ॥ ५२ ॥ बुढ़ापे में भी सब को ऐसा ही दुःख होता है, इसी लिए भगवान् की शरण जाना चाहिये ॥ ५३ ॥ पहले गर्भ में जो पछतावा था वही फिर वृद्धावस्था में, अंतकाल में, आ उपस्थित होता है ॥ ५४ ॥ परमेश्वर की भक्ति न करने के कारण जन्मान्तर होकर फिर माता का उदर प्राप्त होता है और उसी दुस्तर संसार में फिर फंसना होता है ॥ ५५ ॥ भग- वान् के भजन के बिना यह जन्मसरण नहीं मिटता और त्रिविध ताप भोगने पड़ते हैं। उनका वर्णन भागे किया जाता है ॥ ५६ ॥ . छठवाँ समास-आध्यात्मिक ताप । ( शारीरिक और मानसिक रोग ।) ॥ श्रीराम ।। अब त्रिविध ताप के लक्षण बतलाते हैं, श्रोता लोग एकाग्रचित्त हो कर निरूपण का श्रवण करें ॥ १ ॥ जिस प्रकार वार्त पुरुष इच्छित पदार्थ पाकर सन्तुष्ट होता है उसी प्रकार त्रिविध ताप से सन्तप्त हुआ पुरुष संत-संग से शांत होता है ॥२॥ भूक से दुखित पुरुष को अन्न मिलने पर, प्यास से दुखित मनुष्य को जल मिलने पर और कैद में पड़े हुए पुरुष को बन्धन से छूटने पर सुख मिलता है ॥ ३ ॥ बड़ी भारी बाढ़ में जो डूब रहा है उसे किनारे पर लाने से, या जो पुरुष स्वप्न में दुखी है वह जागने पर सुखी होता है ॥ ४॥ कोई मरता हो तो उसे जीव- दान देने से, या संकट में पड़े हुए पुरुष का संकट निवारण करने से सुख मिलता है ॥ ५ ॥ रोगी, अनुभवसिद्ध और शुद्ध ओषधि पाकर, आरोग्य होने पर, आनन्दित होता है ॥६॥ इसी प्रकार जो संसार के कष्ट उठा कर त्रिविध ताप से तापित हुआ है वही एक, सन्त-संग पाकर, परमार्थ का अधिकारी बनता है ॥ ७॥ त्रिविध ताप ये है:- 11८! पहला आध्यात्मिक ताप, दूसरा आधिभौतिक और तीसरा आधिदैविक ताप समझो ॥६॥ आध्यात्मिक ताप कौन है ? उसकी क्या पहचान है और ,आधिभौतिक के लक्षण किस प्रकार जाने जायें ? ॥१०॥ आधिदैविक कैसा है ? उसकी दशा कौन सी है? ऐसे विस्तार से बतलाइये जिससे स्पष्ट मालूम