पृष्ठ:दासबोध.pdf/१४९

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दासबोधे। [दशक ३ और रखा पड़ जाना, अन्न जैसा का तैसा गिरना, आदि आध्यात्मिक ताप हैं ॥ ३१ ॥ पेट फूलना, अफरा लगना, लचक लगना, कौर लगना, आदि को. आध्यात्मिक ताप कहते हैं ॥ ३२ ॥ हुचकी आना, कौर अटक जाना, पित्त उठना, उलाट होना, जीभ में कांटे पड़ना, सर्दी और खांसी आदि आध्यात्मिक ताप हैं ॥३३॥ दमा या स्वास का उठना, टेंटी हटना, सूखी खांसी या कफ लगना, आदि आध्यात्मिक ताप हैं ॥३४॥ किसीके सेंदुर खिला देने से प्राणी का घबड़ाना या गले में फोड़ा हो जाना आध्यात्मिक ताप है ॥ ३५ ॥ घटसर्प हो जाना, जीभ का झड़ना, मुख से दुर्गन्ध निकलना, दांत गिर जाना या उनमें कीड़ा लगना, आध्यात्मिक ताप हैं ॥ ३६॥ पथरी, नाक फूटना, गंडमाला, अचानक आंख का फूटना, स्वयं उँगली काट लेना-ये ताप आध्यात्मिक हैं ॥ ३७॥ ऐंठन या चिलक उठना, दांत उखड़ना, होंठ और जीभ रगड़ना आध्यात्मिक ताप हैं ॥ ३८॥ कानों के दुख, आखों के दुख, नाना प्रकार के दुखों से शोक होना, गर्भाध और नपुंसक होना आध्यात्मिक ताप हैं ॥३६॥ आखों में फूली, ठर, मोतिया- बिन्दु, कीड़ा लगना, आखें अच्छी होने पर भी न दिखना, रतौंध आना'; दुश्चित्त रहना, भ्रमिष्ट रहना, पागल होना, आदि आध्यात्मिक ताप हैं ॥ ४० ॥ गूंगा, बहरा, जन्म से होंठ टूटा हुआ, लूला, मस्तक फिरा हुना, पंगु, ( दोनों पैर से लँगड़ा) कुबड़ा और लंगड़ा होना आध्यात्मिक ताप हैं ॥ ४१ ॥ कैंचा, टेढ़ा, काना, कैंडा, भूरी आखें, ठिगना, ठेस लगा कर चलना, छंगा, घेघा और कुरूप होना आध्यात्मिक ताप हैं ॥ ४२ ॥ बड़- दन्ता, पोपला, लम्बी नाक, बिना नाक, बिना कान, बकवादी, बहुत दुबला, बहुत मोटा होना, आध्यात्मिक ताय हैं ॥४३॥ हकलाना, तुतलाना, निर्बल, रोगी, कुरूप, कुटिल, मत्सरी, खाधुर, क्रोधी होना, आध्यात्मिक ताप हैं ॥ ४४ ॥ संतापी, पश्चात्तापी, मत्सरी, कामी, ईलु, तिरस्कारी, पापी, अवगुणी, विकारी होना, आध्यात्मिक ताप हैं ॥ ४५ ॥ चिक जाना, अकड़ जाना, लचक लगना, गर्दन अकड़ जाना, सूजन, संधिरोग, आदि श्राध्यात्मिक ताप हैं ॥ ४६ ।। गर्भ पेट ही में रह जाना, गर्भ अटक जाना या गर्भपात हो जाना, स्तन पक जाना, सन्निपात, गृहस्थी के संकट, अप- मृत्यु, श्रादि संतापों को आध्यात्मिक कहते ॥४७॥ नाखून का विष, फोड़ा, कुपथ्य से होनेवाला रोग, अचानक दांत की दोनों पंक्षिायां सेंट जाना-इनका नाम आध्यात्मिक ताप है ॥ ४८ ॥ बिन्नियों का झर जाना, सौहों का सूजना, आँख में फुड़िया होना, चश्मा लगना, इनको आध्या- त्मिक ताप कहते हैं ॥ ४६॥ चमड़े पर काले या नीले दाग, तिल, सफेद