पृष्ठ:दासबोध.pdf/१५१

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go दासबोध। [ दशक ३ हाथी, और डांकिनी से जो कष्ट हो वह आधिभौतिक है ॥ ६॥ पानी सै घड़ियाल का खींचना, अचानक डूब जाना अथवा पानी के भीतर चट्टान में गिरना आधिभौतिक ताप हैं ॥ १०॥ अजगर आदि सर्प, मगर आदि जलचर प्राणी और अनेक प्रकार के वनचरों से जो दुख मिले उसे आधिभौतिक ताप कहते हैं ॥ ११॥ घोड़ा, बैल, गधा, कुत्ता, सुअर, स्यार, विलार आदि बहुत प्रकार के जो दुष्ट जन्तु हैं उनसे जो कष्ट मिले उसे आधिभौतिक ताप कहेंगे ॥ १२ ॥ इस प्रकार के कर्कश, भयानक और बहुत तरह के दुखदायक जीवों से जो अनेक प्रकार के कठिन दुख हों उन्हें आधिभौतिक ताप कहते हैं ॥ १३ ॥ दीवालों और छतों का ऊपर टूट पड़ना, पहाड़ियों और मुँहेरों के नीचे दब जाना और वृक्षों का टूट पड़ना आधिभौतिक ताप है ॥ १४ ॥ किसीका शाप लगना, किसीका टटका लगना, अथवा योही पागल हो जाना श्राधिभौतिक तापों में है ॥ १५ ॥ यदि किसीने हैरान किया, किसीने भ्रष्ट कर दिया या किसीने पकड़ लिया तो यह आधिभौतिक ताप है ॥ १६ ॥ कोई विष दे दे, कलंक लगावे अथवा जाल में फाँसे तो यह आधिभौतिक ताप है ॥ १७ ॥ किसी विषैले वृक्ष के स्पर्श से दुःख पाना, भिलावा फर जाना अथवा धुएं से व्याकुल होना आधिभौतिक ताप है ॥ १८ ॥ अंगार पर पैर पड़ जाना, शिला के तले हाथ पड़ जाना अथवा दौड़ते में ठोकर लग कर गिर पड़ना, आधिभौतिक ताप हैं ॥ १६॥ बावड़ी, कुत्रां, तालाब और गढ़े में गिरना अथवा नदी की कगार पर से अचानक गिरना आधिभौतिक ताप है ॥ २० ॥ किले से अथवा वृक्ष पर से गिर कर कष्ट पाना आधिभौतिक ताप है ॥ २१॥ शीत के कारण होंठ, हाथ, पैर, एंडी श्रादि फट जाना और बरसात के कीचड़ में चलने से पैरों आदि में अनेक रोग हो जाना आधिभौतिक ताप है ॥ २२॥ खाने पीने के समय गरम रस से जीभ का जल जाना, दाँत करकराना आधिभौतिक ताप ॥ २३॥ - वचपन में पराधीन होने के कारण कुवातों की, और मारपीट की, तक- लीफ पाना, अन्न, वस्त्र श्रादि के लिए तरसना आधिभौतिक ताप हैं ॥ २४ ॥ ससुराल में स्त्रियों के गुच्चे, ठोने और चिमोटे लगाये जाते हैं, आग से वे दाग दी जाती हैं, यह आधिभौतिक ताप है ॥ २५ ॥ भूलने पर कान उमेंठते हैं, या आखों में हींग डालते हैं, हमेशा डांट-भाल दिखाते हैं, यह प्राधिभौतिक ताप है ॥ २६ ॥ दुष्ट लोग नाना प्रकार की मारे स्त्रियों को मारते हैं और उन विचारी स्त्रियों का नैहर दूर होता है,